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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) सरियां काज ॥ तुक नामें बुद्धि पा, सार, ज्ञान विना जीवित धिक्कार ॥ १॥ ते दारिखी जगमां न ला, झान सहित दीसे गुणनिला ॥अर्थ सहित ने शास्त्र रहित, ते नर नावे महारे चित्त ॥॥ ज्ञानी कापडी आगल कस्यो, मूरख महोटो नूषणनयो॥ बहु आजरणे शोने नहि, ज्ञान जलो तो शोने त हीं ॥३॥ ज्ञानी नर संघले पूजाय, नरपति निज नगरेंज मनाय ॥ ज्ञानी जलो नर जोहु कुरूप, कोण जुवे कोयलनुं रूप ॥४॥ कोयल रूप स्वर म धुरो जेह, तपस्वीरूप दमाज कहेह ॥ पतिव्रता ना रीन रूप, कुरूपने विद्याज सुरूप ॥५॥ अधिकुं रूप ते विद्या कही, गुप्त धन ते विद्या सही ॥ यश सुखनी देनारी एह, वाटें बांधव सरिखी जेह ॥६॥ विद्या राजनवनें पूजाय, विद्याहीन अज पशुत्रा गाय ॥ लक्ष्मी पण जुगतो शोजती, जो उपर बेठी सरखती ॥ ७॥ नाणा उपर अदर नहिं, ते नाएं नवि चालेकहिं॥जिहां अक्षर तिहां महत्त्व ते बह, उत्तम अंगने पूजे सहु ॥ ७॥ तिण कारण अधिकी सरखती, जेहथी गणधर हुआ यती ॥ आचारिज ग उवसाय, पंमित पद ते तुझथी थाय ॥ ए॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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