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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) रीक्षा लीधी में बहु परें ॥ १० ॥ चाव्यो पुरुष सुरं गी जणी, मनमां चिंता कीधी घणी ॥ सुलक्षणी छ हवाणी आज, जेहमां शील सत्य गुण लाज ॥११॥ एम चिंतवतो नर संचरे, जगति सुरंगी बहु परें करे ॥ लाडु खाजां बहु पक्वान्न, घणां शाकशुं पिरश्यां धान ॥ १२ ॥ ढोले वींजणो राखे मन्न, पण नरने नवि नावे अन्न ॥ कहे पुरुष त्यां जश्ने श्राव, कांश क कुरंगी हाथर्नु लाव ॥ १३ ॥ सुरंगी जाये कुरंगी घरे, मांगी मात कहे बहु परें ॥ पीरश्युं अन्न नवि जावे किस्युं, तुम उपर मन तेहनुं वस्युं ॥ १४ ॥ कांश्क तुम घरनुं द्यो शाक, नगति तुमारी माने लाख ॥ कपट कुरंगी त्यारें करे, वह राख बेश चूले धरे ॥ १५ ॥ बाटो मरि पुट लींबु तणो, बीजो संच कस्यो तिहां घणो ॥कोडि वाटका मांहे धरे, आपे ताम लेश संचरे ॥ १६ ॥ आवी मू क्यो सोवन थाल, मारे सरडका न जूए निहाल ॥ घणुं प्रशंसे बापडीना हाथ, कशी कहुं केलवणी वात ॥ १७ ॥ एहवा रागना पुरुष जे होय, अ वगुण गुण करी माने सोय ॥ तेहने धर्म न कहेवो वली, रुषल सुणतां मति निर्मली ॥ १७ ॥ १२ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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