SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७ ) जाणे रस विरस, जे सेवे वनराय ॥ गुण शुं जाणे बापडो, शूकां लक्कड खाय ॥ ७ ॥ सकल नेद पंकि त लहे, नव रस करे वखाण ॥ श्रगम चरित्र दोहा कहे, कर सकल प्रमाण || ८ || ( सूत्रवृत्ति जायज प्रमुख, पंचांगी परमाण 1) सकल शास्त्र सुणवुं सही, आगम चरित्र सुसार ॥ एक गाथायें बूकियो, देखो क्षुल्लक कुमार ॥ ए ॥ हलुकर्मी समजे सही, करतो पातक रोध ॥ देवगिरि जग शिव वसे, वदुधी लहे प्र तिबोध ॥१०॥ जे पर सरिखा नरा, ते नवि बृजे क्यांही ॥ मानी मूरख गलें, धर्म न कहेवो प्राहि ॥ ११ ॥ अंधेकुं क्या वारसी, बहिरेकूं क्या बात ॥ जाण समजावे जाणकुं, सामो होय संताप ॥ १२ ॥ पापीने प्रतिबोधतां, पत पोतानी जाय ॥ टपलो सरा णे चढावतां, रीसो नवि थाय ॥ १३ ॥ ( नंदीषेण मति निर्मलो, शोनी मन न सोहाय ) रक्त पृष्ट मूर ख नरा, पूर्व व्युदग्रहियो जास ॥ धर्मयोगि चारे नहिं कथानकदेवी तास ||१४|| सर्व गाथा ॥ १६४॥ ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ तेहने नवि देवो उपदेश, राग धरे गुण नहिं लवलेश ॥ सुजट एक परण्यो स्त्री दोय, सुरंगी ने कु For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy