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( १९३) ण होय तव तेडे ॥ जूहार व्यवहार सन्मान साच वीयें, तेडे दूरथी नेडे हो ॥ ज० ॥ ५॥ श्राप सु खीने साजन दोहिलो, तो तस सुखीयो कीजें ॥ नहिं कर हीनपणुं आपणने, लाजें नाम ते लीजें हो ॥ ज० ॥६॥ लोकमांहे निंदा पण लहियें, सुण ध्वजनो दृष्टांतो ॥ देव विमानदंग उपर ऊंचो, बेसी त्यां नाचतो हो ॥ ज० ॥ ७ ॥ कहे कविता जुंनी गुं कूदे, वंशे करे बाया ॥ अन्य पुरुषने शकि देखाई, निज कुलना होये जाया हो ॥ जण ॥७॥ श्ण दृष्टांतें समजो पुरुषो, श्रावो साजन कामें ॥ साजन सोय कह्यो जगमांहिं, आवे एटले गमें हो ॥ ज० ॥ए॥ दौर्जिय श्राकरे व्यसने पडियो, शत्रु ने संकटें पासें ॥ राजनुवनें समशाने पासें, साजन त्यां नवि नासे हो ॥ ज ॥१॥ स्या जनने सुखी या कीजें, जाणे श्राप उझारो॥अरहट न्याय जिस्यु घन जाणे, खाली थतां नहिं वारो हो ॥ ज० ॥१९॥ हुँ डकार करुं जो एहनो, एढ करे मुझ कामो॥सर खो काल न जाये कहेनो, जु पांमव हरि रामो हो ॥ ज० ॥ १२ ॥ कार्य करे पंच साजन पूढी, रुषज कहे हितशिक्षा ॥श्रांगुलीनो दृष्टांत न जाणे,
हि. १३
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