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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७ ) जोबन हुवे अवल ह || बलि हरिचंद रावणो ॥ ५ ॥ ढुंते मूरख चेत धन, म धरिश बानुं रेक ॥ सोवन को सतोरणी, रावण मूकी लंक ॥ ६ ॥ यौवन कवण न बेतयुं, भूखें कवण न खद्ध ॥ लोजी कवण न वाहियो, कानें कवण न दद्ध ॥७ ॥१३६॥ ॥ ढाल ॥ एणी पेरें राज्य करंत रे ॥ ए देशी ॥ ॥ कालें सहको दद्ध रे, तिणें नर चेतजे ॥ अंत समय वली प्रति घणुं ए ॥ १ ॥ कही शिखामण सार रे, मनमां धारजे ॥ निज देरासर जूहारजे ए ॥ २ ॥ पढें पुरुष सुण वात रे, जिनमंदिर ज‍ यें ॥ निसहि त्रण तिहां कहियें ए ॥ ३ ॥ मनह व चन जे श्राप रे, कायायें करी ॥ संसार काम निषेध जे ए ॥ ४ ॥ मुऊ देहरानुं काम रे, करवुं ते सही ॥ अवर काज कल्पे नहिं ए ॥ ५ ॥ निसहि मध्य त्रण वाम रे, मन वचनें करी ॥ देवल काम निषेधतो ए ॥६॥ करूं जिनप्रतिमा काज रे, पूजुं पूजावुं ॥ त्रि विध ध्यान निश्चल धरूं ए ॥ ७ ॥ पूजी निसही त्र एय रे, कहेतो स्तुति करे, पूजाद्रव्य निषेधतो ए ॥ ८ ॥ एम जिन जुहारो आप रे, आयें मूकतो, फल नाएं मूके सही ए ॥ ए ॥ श्रशातना उत्कृ हि० २ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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