SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) तव हरख्यां ततकाल ॥ २२ ॥ नर चिंते ए देवें फरी, रूपवती कीधी सुंदरी॥ लकण परगट वचन सुसार, सरव फखं तूगे किरतार ॥३॥ नारीयें नर निरख्यो ते सरूप, किहां गयो ते पापी कुरूप ॥वच न विनय श्रा नरमा बहु, दैवें दूषण टाट्युं सहु ॥२४॥ बेहु नर नारीनां मन मिल्यां, पढ़ें बेहु लुगा सल सत्यां ॥जाग्यो नरने निरखी नार, तु रंमा केम श्राणे गर ॥ २५ ॥ विंगणरंग जिसी उजली, जल कोठी सरखी पातली ॥ नीची ताड जिसी तुं नार, क्याहांथी आवी मुऊ घरबार ॥ २६ ॥ न्हानुं पेट जिश्यो वादलो, लमो हीण जिस्यो कांबलो ॥जीन सुहाली दातडा जिसी, देखी अधर उंट गया खसी ॥२७॥ शनयणी श्रावी क्यांहथी, पखालजल की जा खप नथी ॥ पग पीजणीने वांका हाथ, बाव लशं कोण देशे बाथ ॥ २० ॥ लांबा दांत ने ट्रंकुं नाक॥Jटकनी मुख कडवां वाक्य ॥ढूंकी लटीयें घो घर साद, जा जृमी तुऊ किश्यो सवाद ॥णा बोली ग्रैमी रांमना रहे, अणहूता अवगुण मुऊ कहे ॥ ता हारं रूप तो वानर जिस्युं, तुं कोण जे मुझ कौतुक वस्यं ॥३०॥ वलगां दोय गयां दिवान, नारी कहे For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy