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________________ www.kobatirth.org ( १७१ ) श्वान मांही अंतर कियो, नवि जाये पूरवनो दियो ॥ दत्तवती बेसे पालखी, एक तो श्वान होये यति डुःखी ॥ ए ॥ पंखी जातिमांहे अंतर वडो, इंटथें ज माडे जर कागडो ॥ कोकिल पूजा पामे बहु, वचन तो ते महिमा सहु ॥ १० ॥ मानव मानवमांहि अंतर करयो, रत्न भूषणें दी से जस्यो । एकने तरुया तणी मुडिका, लगा हीं नर ते थका ॥ ११ ॥ एक पहेरे रेशमी धोतियुं, एकने नहिं फाटुं पोतियुं ॥ एकने तेडे सजा मजार, एक ठेलाणो जाये बहार ॥ १२ ॥ एक ते गमेंज समाय, एक बते वामें फरी जाय ॥ सकल जीवमांही इम प्रांत, राजा जोजने कहे जे खरुं ॥ १३ ॥ दूध कचोलुं तें मोकल्युं, ते जाये बेसहि ऊगव्युं ॥ पण खंग एमां हींज समाय, नवि उंचुं थई दूध न खाय ॥ १४ ॥ इस्युं कहीने पंक्ति त्यांहिं, मूके पतासां दूधज मांहिं ॥ सोय समाणां दीवां जिस्यें, आएंयुं कचोलुं जोज कने तिस्यें ॥ १५ ॥ पूबी जोज दीये आदेश, नगरमांहिं कीधो परवेश || जाणो नाम तिहां उत रो, मुऊ नगरी तुमें रहे करो ॥ १६ ॥ शारद कुटुं ब नगरमांहिं जाय, कुमरी एक मली तस वाय ॥ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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