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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६६) मशाणे, जूमि सूवे नर घेलो ॥ मूरख मर्म नजाणे कां, जोगकामें ते पहेलो ॥ हो देवा ॥६॥ वस्त्र हीण हिंझे नर नागो, हाथ पाय परिवारो॥बहेरो बोबड आंधो चीबो, जीते नहिंज विकारो ॥ हो देवा ॥॥ जरादंग वागो कटिमांहि, शिर पलियां सूगालो ॥ विषय तणी हजी वात न मूके, जो हुर्ड विण दंतालो ॥ हो देवा ॥॥ सर्वगाथा ॥१४॥३॥ ॥दोहा॥ ॥ विषयविवल नारी हुई,कहे कोइ नरने आण॥ नवरी मन दह दिशि फरे, होय गुण केरी हाण ॥१॥ ॥समस्या ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ कन्या काय कुमारी घणी, कृपण लही वाधे श्या नणी ॥ चाडी तांत कहो केम करे, त्रण उत्त र यो एक अस्करें ॥१॥ अर्थ ॥ नवरी ॥ नवरी नारी नहिं घर कंत, धन यौवन ने रूप अत्यंत ॥ महोंढे मंदिर सार सजाय, कहे मोशीने काम क थाय ॥२॥ तेणें नारें ससराने कडं, वहूनुं मन नवि जाये रह्यं ॥ नवरी न रही यौवनवती, सोय शील केम राखे सती ॥३॥ ससरे बुद्धि विचारी त्यांय, मेव्यां माणस निज घरमांय ॥ सरव काम करो For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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