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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६०) तस पात ॥ १३ ॥ न वढे बांधवगुं कदा, राखे वडा नी लाज ॥ त्रात अहाणुं जरतना, मूके पृथ्वीराज ॥ १४ ॥ जातें तेड्या बल करी, मिली षन कहे जात ॥राज दीयो कीजें वडा, नांख्यो खामीतात ॥ १५ ॥ अहाणुं गाथा तणुं, कह्यु अध्ययनज त्यां हिं॥ श्री सूयगडांग धुरें सही, जु सिद्धांतज मांही ॥ १६ ॥ पुत्र अहाणुं वारिया, म वढो बंधव साथ॥ वढो कषायज चारशें, नावो जमने हाथ ॥ १७ ॥ बंधव अहाणुं बूफिया, मूके लोन कषाय ॥ वढवा नागा वातशु, लोधी तेणें दीदाय ॥ १० ॥ सुख मां सांजरे नारया, पुःखमा सांजरे माय ॥ बांधव त्यारे सांजरे, मस्तकें वागे घाय ॥ १५ ॥ नूख्यां जोजन समरिये, तरश्यां समरे नीर॥रणमांहीबांधव समरियें, माडीजायो वीर ॥२०॥ रयणी थोडी रण घणां, पूजें चढ्यां केकाण ॥ बांधव होय तो मां मिये, नहि कर उमवी पराण ॥१॥ व काको माउलो, नाणेजो जतरीज ॥ उचित एहनुं साचवे, जगति जलेरी कीज ॥ २२ ॥ उचित नारीनुं साच वे, ते सुखीयो संसार ॥ षन कहे हित शीखडी, को म म उहवो नार ॥२३॥ आणंद कहे नर For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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