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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४६ ) थयो | जिन कहे तो शिंगण थाय, जैन धर्म पमा ताय ॥ ८ ॥ वाणोतर कहे शाहने फरी, रिद्धि पाम्यो जिनधर्मे करी ॥ तुमें याराधो जिननो धर्म, थोडे दिवसें फले तुम कर्म ॥ ए ॥ यति पासें ते तेडी गयो, सुणे सूत्र तिहां गहगह्यो । पडिक्कम गुं सामायिक करे, जिन पूजी जिनने मन धरे ॥ १० ॥ वाणोतर करतो व्यापार, वाधे वादलो शे वनो सार ॥ श्रवे लाज थापे शेठने, थोडे दिवसें वाध्य ते धनें ॥ ११ ॥ श्रावी असता जिन उपरें, खरच्युं धन तेणें बहु परें । तें दीक्षा लीधी सार, सति पायो तेणी वार ॥ १२ ॥ पूढे गौतम जि नवर तणे, शिंगण हू एम जणे ॥ वीर कहे शिंगण थयो, बीजो भेद कवि रूप कह्यो ॥ १३ ॥ ॥ ढाल ॥ कदलीवननो रे सूडलो ॥ ए देशी ॥ ॥ गौतप स्वामी रे पूढता, सांजलो जिनवर राय के ॥ जेणें जिनधर्म पमाडियो, शिंगण किम तर थाय के || गौतम० ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ यति य तिनी श्रावक श्राविका, सुणि तस धर्मकथाय के ॥ पामी धर्म थयो देवता, करे हवे एटला उपाय के ॥ गौ० ॥ २ ॥ धर्माचारय आपणो, पीड्यो रोगें For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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