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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४४) बहु लखमी पाम्यो ते तिस्ये ॥ १२॥ सरव शेठ तj मोकले, मांमयो वणज पोतें एकले ॥ धन उपार्जी आव्यो घरे, करे विनय शाहानो बहु परें॥१३॥नामुं करी नदावा लेह, बीजे नगरें रह्यो जर तेह ॥ कालें शेठ ते नांग्यो घणुं, अडवा लागुं जमवा तणुं ॥१४॥ ॥दोहा॥ ॥ दिन सघला सरखा नहिं, म करो पुरुष गुमा न ॥ ब्रह्मदत्त चक्री जिस्या, जमतां न मिले धान ॥१॥ दाधी नगरीधारका, नाग बांधव दोय॥तर श्यो त्रिकम वन मुर्म, मान म करश्यो कोय ॥ ॥२॥ समय कर्षण समय धन, समय सह समर ब॥ गोपन राखी अर्जुनें, तेह जाथा तेह हल ॥३॥ लजा मति सत्य शील कुल, उद्यम वरत पलाय ॥ ज्ञान तेज मानज वली, ए धन जातां जाय ॥४॥ सायर पुत्री त्रिकम पियु, चंद सरीखा नाज॥ लबी हीमे घर घरें, महिला नीच सजाउ ॥ ५ ॥ लही ग वाणिग तणी, हियडे करे विचार ॥ हवे घर बेसी झुं रहूं, अन्यदेश मुफ सार॥६॥ दंत केश नख अधम नर, निज थानक शोनंत ॥ सुपुरुष सिंह गयंद मणि, सघले मान लहंत ॥ ७॥ श्स्युं विचा For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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