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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४२) थाय, शेठ धर्मगुरु मात पिताय ॥ ५॥ तेल सत सहस पाकने ग्रही, करे अन्यंगन पोतें सही। सुगंध पीठी अंगें करी, तेल उतारे सुत बल धरी॥६॥ सुगंधनीरें धूए शरीर, लूहे ले निर्मल चीर ॥ पहे रावे शोले शिणगार, विचरे नांखे षन विचार॥॥ ॥बप्पय ॥ ॥ कुंड मुंब सम राय, मर्जन कुंमल कानें ॥ वस्त्र तिलक वाणही, मुकुट मुख शोने पानें ॥खड्ग मुनि का हाथ, चंदन अंगें लगावे॥कमरें पटंबर सार, बु रिका त्यांहि बनावे ॥ विद्या विनीत शीलें जला, शोल शणगार शोहे नरा ॥ कवि शषज एणी परें उच्चरे, पु एय पुरुष पामे खरा ॥१॥ सर्वगाथा ॥ १२०४ ॥ ॥ ढाल चोपानी देशी॥ ॥जला पुत्र होये जग जेह, एणी परें जगति करे ले तेह ॥पूबी वात करे नित्य नमे, नूख्यो तात पोते नवि जमे ॥ १॥ रूपा तणी मूके श्रा मणी, जोजननी मांगे मांगणी ॥ मूके कनक तणो त्यां थाल, अति उज्ज्वलने अतिहि विशाल ॥२॥ मन गमता पीरसे त्यां पाक, सुख पामे जिनाने नाक ॥ बहु पक्वान्न न लाधे पार, सिंघ केसरिया मोद For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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