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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) मनुज रिजि पामियें जी, व्रतसिजि गति तस होय॥ धन सारथवाह परें जी, शालिन परें जोय ॥ सो ॥२॥ वित्त वारु ते शुं करे जी, सलियो पात्र असा र ॥ लरकनोजी बांजण परें जी, ते नवि पामे पार ॥सो॥३॥ जव जव जमतां पामियो जी, थोडाथो डेरो जोग ॥ सेचनक हाथी ते थयो जी, श्वेत ना तन योग ॥ सो० ॥४॥ जे ब्राह्मण आगले थप जी, करतो जमणजवार ॥ उगरतुंतो आपतोजी, पात्र मुनिने आहार॥सो ॥५॥नंदीखेण नर तेथयोजी, श्रेणिकनो सुत जेह ॥ पंच सयां नारी वस्यो जी, पात्र दान फल एह सो॥६॥ हस्तिवनें ग्रही श्राणियो जी, श्रेणिकने घरे सोय ॥ नंदीखेणने निरखतो जी, जाति समरण होय ॥ सो ॥ ७॥ हस्ती तोये बू डियो जी, पहेली नरगें जाय ॥ पात्र दोष तणो वली जी, बीजो नंगो कहाय ॥ सो॥ ॥ वित्त नूपातर नदु जी,त्रीजो नांगो एह ॥ देता बहु सुख पामतां जी, सुण दृष्टांत कहेय ॥ सो ॥ ए॥ बीज विजेद इषुकंदनुं जी, जाये जेणी रे वार ॥ का शबीज तिहां वावतां जी, उगे शेलडी सार ॥ सोग ॥१॥ नूमि नली माटें वली जी, ऊगे इषुरस कंद ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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