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________________ www.kobatirth.org ( १२० ) ॥ १२ ॥ इह लोकें परलोके सुखी, नहिं कदि नरने जांख्यो दुःखी ॥ ते सुख पामे धर्म पसाय, धर्म विना सदु दुःखीयो धाय ॥ १३ ॥ कोई एक साधे धर्म ने काम, तो रण वाधे मूके ठाम ॥ धर्म अर्थ सेवे जो दोय, संतान सुख तस केइ परें होय ॥ १४ ॥ धर्मार्थ नेत्री जो काम, त्रण वर्ग साधे नर जाम ॥ पूरो पुरुष जग ते कड़ेवाय, उठो सेवे जंढो थाय ||१५|| तादाविक नर कहियें तेह, मन चिंते धन धर्मे देह ॥ एह पुरुष सघलामां सार, बीजो मूलह रति सा ॥ १६ ॥ बाप तणुं धन दिये कुठा म, कदरी पुरुषनुं नावे काम || नवि खाये सेवकने दिये, धर्म में ते नवि खरचीयें ॥ १७ ॥ धर्म अर्थ न सेवे काम, कदरी पुरुष तेहनुं नाम । तेहनुं धन गोत्री मागेह, हरे चोरने राजा लेय ॥ १८ ॥ अगनि नीर जोमि विणसशे, पुत्रादिक मली खय घालशे ॥न वि खाये दाटयुं उल्लसी, त्यारें पृथवी मनमां इसी ॥१॥ कुण दाटे कोनुं वे एह, एहने मोढे धूलि पडे ॥ इम पृथवी चिंते तस गर, जिम कुशी लिणी हसती नार ॥ २० ॥ सुतने बाप रमाडे जिसे, नारी कुशी लिणी हसती तिसे ॥ कुण हुलरावे कोणनो जयो, Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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