SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११६) जांगो तो नूपति जलो, मातो जलो न नील ॥१॥ सखी सहोदर मिये, जे होय हश्ये पुष्ट ॥ श्रा क्युं नहिं कट्टीयें, अहि मश्यो अंगुष्ठ ॥२॥ गेरु बेरु सारिखा, वहेरो नहिं नरपाल ॥ गेरु पान रातां करे, बेरु करे कपाल ॥३॥ गंगा सायरमांहि वसे, मत्स्य फुगंधो देह॥अवगुण जास शरीरमां, फेस्यो न फीटे तेह॥४॥ दूधे सींच्यो लींबडो, थाण उस करी धूलेण॥ तोहि न मे कडुआ पणुं, जातितणे गुणेण ॥५॥ ॥परजीया रागमां ॥ दोहा ॥ . ॥पहेला प्रीति करेह, ऊंखें आलोच्यु नहिं ॥ जीखाव्यांज नवेह, मीठग बोले माणसें ॥१॥जेह, रातुं बोर, तेहबुं हैयुं उर्जन तणुं ॥ जीतर कग्नि कठोर, उपर दीसे रलियामणुं ॥२॥ एनए॥ ॥दोहा॥ ॥ सुरतरु जाणी सेवियो, अरे निगुणा पलाश ॥ जब तें मुह काबुं की, तब में बंमी आश ॥१॥ जमरे रान नमंतडां, अगरज कोस्यो कोय ॥ तास तणे जोलामणे, वंशज कोरे सोय ॥२॥ एक पा से उर्जन जलां, सजन न वसे चित्त॥ बाया गुण तो जाणीयें, जोतां वडला गत्त ॥३॥ अग्नि जिस्यो For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy