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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir OJP - पति वीरक की वनमाला नाम की स्त्री को विशेष रूपवती होने से अपने अन्तःपुर में रखली। वह शालापति उसके वियोग से पागल हो गया । जिसको देखता है उसे ही वनमाला वनमाला कह कर पुकारता है । इस दशामें अनेक तमाशबीनों सहित वह नगरमें भटकता फिर रहा था। उस समय राजा और वनमाला राजमहलमें एक बारी में बैठे हुए क्रीडा कर रहे थे। अचानक ही उन दोनों की नजर उस वीरक शालापति पर पड़ी। उसकी दशा देख दोनों के मनमें अपने अनुचित कर्म के लिए पश्चात्ताप पैदा हुआ । उस वक्त आकाशमें बादलों का जोर था, अकस्मात् उपर से बिजली पड़ी और उस से उन दोनों की मृत्यु हो गई। शुभ परिणाम से मर कर दोनों ही हरिवर्ष क्षेत्र में युगलिकतया पैदा हुए । शालापति को उनकी मृत्यु का समाचार मालूम होने पर होश आ गया । उन पापियों को उनके पाप का दण्ड मिल गया, इस भावना से उसकी विकलता दूर हो गई। वह फिर वैराग्य प्राप्त कर तपस्या करने लगा। उस तप के प्रभाव से मर कर सौधर्म कल्प में किल्बिषिक देव हुआ। विभंग ज्ञान से उन दोनों को देख कर विचारने लगा कि-अहो! ये मेरे शत्रु युगलिक सुख भोग कर देव बनेगें; इन्हें तो दुर्गति में धकेलना चाहिये । ऐसे विचार से अपनी शक्ति से उनके शरीर संक्षिप्त कर के वह देव उन्हें यहां भरत क्षेत्र में ले आया। यहां पर राज्य देकर उन्हें सातों व्यसन सिखलाये । वे व्यसनों में आसक्त हो मर कर नरक में गये । उनका जो वंश चला वह हरिवंश कहलाता है। यहाँ पर युगलिकों को शरीर और आयु संक्षिप्त कर भरतक्षेत्र में लाना और उनका मर कर नरक में जाना यह सब कुछ आश्चर्य में समझना चाहिये । यह सातवाँ RS - N For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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