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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रयोग ३४१ प्रसुप्ति प्रयोग पुं० [सं.] काममा लेवु-वापरतुं ते प्रवाही वि०[सं.] वहेतुं के वहे एवं (२) (२) अजमावी के वापरी जोवू ते (३) स्त्री० रेती दाखलो; दृष्टांत (४) मंत्रनो प्रयोग प्रविसना अ० क्रि० (प.) प्रवेशवं (५) व्याजे धीरवू ते प्रवीण वि० [सं.] कुशळ; होशियार प्रयोजक पुं० [सं.] प्रयोग करनार प्रवृत्त वि० [सं.] (काममां) लागेलं के प्रयोजन पुं० [सं.] अर्थ; हेतु (२) मतलब; लगाडेलु; रोकायेखें गरज (३) उपयोग प्रवृत्ति स्त्री० [सं.] वलण; रुचि; झुकाव प्रलंब वि०[सं.] अति लांबु (२) लटकतं; (२) कामकाज (३) संसारनुं कामकाज टींगावेलु (३) सुस्त; ढीलु (४) पुं० के तेमां लागq ते [पहोंच लटकवू ते (५) डाळी प्रवेश पुं०[सं.] दाखल थq ते (२) गति; प्रलय पुं० [सं.] लय थर्बु ते (२) संसारनो । प्रवज्या स्त्री० [सं.] संन्यास सर्वनाश. -यंकर वि० प्रलयकारी प्रशंसा स्त्री० [सं.] वखाण; तारीफ.-सक प्रलाप पुं० [सं.] नकामो बकवाद; लवारो. पुं० वखाणनार (२) खुशामतियो. -पी वि० ते करनार -सनीय वि० वखाणने पात्र प्रलेप,न पं०[सं.लेप, मलम इ० के ते प्रशस्त वि०[सं.]वखणायेलं;उत्तम.-स्ति ___ चोपडवू ते स्त्री० प्रशंसा. -स्य वि० प्रशंसनीय प्रलोभ,०न पुं० [सं.] लोभ, लालच । प्रशाखा स्त्री० [सं.] शाखानी शाखा; प्रवंचना स्त्री० [सं.] वंचना; ठगाई। डाळखी प्रवचन पुं० [सं.] स्पष्ट निरूपण के प्रश्न पुं० [सं.] सवाल. -श्नोत्तर पुं० विवरण(२)धर्म के नीति पर व्याख्यान सवाल-जवाब (२) पूछपरछ प्रवर वि० [सं.] श्रेष्ठ; मुख्य (२) पुं० । प्रश्रय पुं० [सं.] आश्रय (२) टेको संतान (३) अगरबत्ती (४) गोत्रना प्रसंग पुं० [सं.] अवसर; मोको (२) मेळ; प्रवर्तक मुनि ___ लाग (३) बनाव (४) प्रकरण; विषय प्रवर्तक पुं० [सं.] संचालक (२) प्रथम प्रसन्न वि० [सं.] राजी; खुशी (२) स्वच्छ प्रवर्तावनार-चलावनार (३) मध्यस्थ; प्रसव पुं० [सं.] जनमवू ते; प्रसूति (२) पंच संतान के फलफल प्रवर्तन पुं० [सं.] प्रवर्तQ के प्रवर्तावq ते प्रसाद पुं० [सं.] कृपा; महेरबानी (२) प्रवाद पुं० [सं.] वातचीत (२) कूथली; प्रसन्नता(३)निर्मळता (४)देवनो प्रसाद निंदा (३) अफवा; ऊडती वात प्रसादी स्त्री० प्रसाद (२) वि० कृपाळु प्रवास पुं० [सं.] परदेश के त्यां निवास. (३) निर्मळ [संचार; गमन -सी वि० परदेशवासी. -सित वि० प्रसार पुं० [सं.] पसारो; फेलावो (२) देशनिकाल थयेलं प्रसिद्ध वि० [सं.] जाणीतुं (२) शणगारेलं. प्रवाह पुं० [सं.] (पाणी इ०) वहेवू ते; -द्धि स्त्री० ख्याति (२) शणगार (२) वहेतुं पाणी (३) क्रम; प्रघात प्रसुप्त वि० [सं.] ऊंघेलं.-प्ति स्त्री० ऊंघ For Private and Personal Use Only
SR No.020375
Book TitleHindi Gujarati Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganbhai Prabhudas Desai
PublisherGujarat Vidyapith
Publication Year1956
Total Pages593
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationDictionary
File Size22 MB
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