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बे बोल हिंदुस्तानी-गुजराती कोषनी आ बीजी आवृत्ति छ । एवो कोष आपणी भाषामां बीजो में नथी जोयो। नागरी ने उर्दू लिपिमा साथे शब्दो आपवावाळो कोष ए नवं साहस लागे छ । जो नागरी अने उर्दू लिपि साथे जाणवा ने हिन्दी अने उर्दू रूपमा साथे बोलवानी आवश्यकतानो स्वीकार थाय, तो आवा कोषोनी जरूरियात बहु छ ।
आ कोष वापरवानी रीत सामान्य कोष वपराय छे तेम नथी। आ कोषने हिन्दुस्तानीनो अभ्यासी वारंवार जुए तो तेमांथी बन्ने लिपिनुं ने बन्ने बोलीना शब्दो- तेनुं ज्ञान सहेजे वधे । आ कोषना सदुपयोगनी बीजी रीत ए छे के, तेमां भूल रही गई होय तो तेनी नोंध करी लेवी ने जे शब्दो न मळे ते लखी लेवा, ने एनी नोंध वखतोवखत संपादकने मोकल्या करवी । संपादक पोते सूचनानो घटतो उपयोग नवी आवृत्तिने सारु करी शके अथवा वधारा तरीके जेनी पासे कोष होय ते नजीवे दामे नवी आवृत्तिनुं काम लई शके। वळी मूळ कोष खरीदनारने ते पुरवणी तरीके मोकली शकाय ।
मारी उमेद छे के आ साहसने गुजराती जनता वधावी लेशे। मद्रास जतां ट्रेनमां,
मो० क० गांधी २१-१-४६
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