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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कूरा ११८ केराना कूरा पुं० [सं. कूट, प्रा. कूड] (स्त्री० कृषक पुं० [सं.] किसान; खेडूत -री = ढगली) ढगलो (२) भाग; अंश कृषि स्त्री० सं.] खेती कूर्म पुं० [सं.] काचबो कृष्ण वि० [सं.] काळु (२) पुं० श्रीकृष्ण फूल पुं० [सं.] किनारो (२) तळाव कृष्णाष्टमी स्त्री० [सं.] गोकळआठम कूला, कूल्हा पुं० कूलो ---- के के स्त्री० चे चे अवाज कूवत स्त्री० [अ.] कौवत; शक्ति केंचली स्त्री० सापनी कांचळी कृच्छ्र पुं० [सं.] कष्ट; दुःख (२) वि० केंचुआ (-या) पुं०अळसियु;सरसियु(२) काठण; कष्टमय सतयुग झाडामां नीकळतो सफेद लांबो करम कृत वि० [सं.] करेलु (२) पुं० कार्य (२) केंचुरि(-ल,-ली) स्त्री० जुओ केंचली' कृतकृत्य वि० [सं.] कृतार्थ; सफळ; धन्य केंद्र पुं० [सं.] केन्द्र, मध्यबिंदु [एकत्रित कृतघ्न वि० [सं.] निमकहराम; उपकार केंद्रित, केंद्री वि० [सं.] मध्यमां आवेलुं; न माननार कदर करनार केंद्रीय वि० [सं.] केंद्रित (२) मुख्य कृतज्ञ वि० [सं.]निमकहलाल; उपकारनी के स० (प.) कोण? कृतांत पुं० [सं.] यम (२) शनिवार (३) केउ स० (प.) कोई सिद्धांत केकड़ा पुं० करचलो पुं० मोर कृतार्थ वि० [सं.] कृतकृत्य केका स्त्री० [सं.] मोरनो टहुको. -की कृति स्त्री० [सं.] कार्य; रचना (२) केड़ा पुं० नवो अंकुर; कुंपळ(२)नवजुवान जादु (३) एक छंद (४) कातर के छरी केत पुं० केतन; घर (२) केतकी घj कृती वि० [सं.] कृतार्थ; नसीबदार (२) केतक पुं० [सं.] केवडो(२)(प.)केटलं(३) कुशळ; होशियार (३) भलं; पवित्र केतकी स्त्री० [सं.] केवडो निशान (४) कह्यागरुं (३) कृत्तिकानक्षत्र केतन पुं० [सं.] घर; स्थान (२) धजा; कृत्ति स्त्री० [सं.] मृगचर्म (२) चामडु केतली स्त्री० कीटली; चादानी कृत्तिका स्त्री० [सं.] एक नक्षत्र केता वि० [स्त्री०-ती] केटलं; 'कितना' कृत्य पुं० [सं.]कार्य(२)वि० करवा योग्य केतिक वि० केवु (२) केटलं कृत्रिम वि० [सं.] बनावटी; नकली केतु पुं० [सं.] धजा (२) एक ग्रह कृत्स्न वि० [सं.] आखं; बधुं; समग्र केतो वि० (प.) जुओ ‘केता' 'केतक' कृपण वि० [सं.] कंजूस (२) दीन; क्षुद केदली स्त्री० कदली; केळ कृपा स्त्री० [सं.] महेरबानी; दया केदार पुं० [सं.] वावेलु खेतर (२) कृपाण (-न) पुं० [सं.] किरपाण;तलवार _क्यारडो (३) झाडनो क्यारो कृपाल,-लु [सं.] वि० कृपाळ; कृपा के केन्द्र,-न्द्री इ० जुओ 'केंद्र' महेरबानीवाळू केयूर पुं० [सं.] बाजुबंध कृमि पुं० [सं.] करम; जंतु; कीडो केर [सं. कृत] (स्त्री० -री)(प.) केरं';नुं कृश,-शित वि० [सं.] दुबळं पातळू (२) अर्थनो एक प्रत्यय । नानु; क्षुद्र केराना पुं० 'किराना'; करियाणु For Private and Personal Use Only
SR No.020375
Book TitleHindi Gujarati Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganbhai Prabhudas Desai
PublisherGujarat Vidyapith
Publication Year1956
Total Pages593
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationDictionary
File Size22 MB
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