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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जन. मजहबमें मूर्तिका मानना कदीमसे न होतातो ये पुरानी मूर्तियें क्यौं होती? और पुराने जैनतीर्थभी क्यों होते ? बाद निर्वाण तीर्थंकर महावीरस्वामीके (२९०) वसं पीछे एक संप्रतिराजा जैममजहबमें कामीलएतकात हुवा, जिसके तामीर करवाये हुवे जैनमंदिर हिंदमें कइजगह अवतक मौजूद है, तीर्थशत्रुजय, गिरनारपर इसीराजासंप्रतिके बनाये हुवे पुराने जैनमंदिर अबतक खडे है, आबुके जैनमंदिर मुल्कोमें मशहूर है, शेठ विमलशाह, दिवान वस्तुपाल, तेजपाल और शेठ भेसाशाहके बनवाये हुवे जैनमंदिर आबुपहाडपर क्याही! ऊमदा कारिगिरीके नमुने खडे है, जिसका बयान लिखना कलमसे बहार है, बडे बडे शिल्पकार इनमंदिरोको देखकर ताज्जुब करते है, राजाकुमारपालका बनाया हुवा जैनमंदिर तीर्थतारंगापर किसकदर मजबूत और पावंदवना है जिसकी तारीफ बेंमीशाल है. जैनागमज्ञातासूत्रमें सतरांहतरहकी पूजाका बयान है, खयाल करो कि अगर जैनमजहबमें मूर्तिपूजा न होतीतो औसा वयान क्यों होता? जैसे हफोंकों देखकर ज्ञान पैदा होता है, मूर्तिको देखकरभी ज्ञान होता है, जिसने पुस्तककी इज्जत किइ ऊसने मूर्तिकीभी इज्जत किइ समजो, चाहे वो मूर्तिपूजासें अतराज करे मगर ऊसके दिलसे मूर्तिकी इज्जत साबीत होचुकी. . इसकिताबके बनानेका सबब यह दवा कि जब मेने संवत् (१९७१) का चौमासा बमुकाम शहरधुलिया, जिले खानदेशम किया, मुकाम वरोरा, जिले चांदासे भेजा हुवा एक “मिथ्याभर्मनास्ति' नामका इस्तिहार बजरीये डाक मुजकों मिला, इसके लेखक मुनि कुंदनमलजी है और प्रसिद्धकर्ता जौनी गटुलाला कस्तुरचंदजी खानदेश है. इसमें मेरी बनाइ हुइ किताब सनम परस्तिये जैनपर कुछ विवेचन दिया है. इसमे न किसीमूत्रका पाठ For Private And Personal Use Only
SR No.020373
Book TitleHidayat Butparstiye Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherPruthviraj Ratanlal Muta
Publication Year1916
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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