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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir RECERGREEEEEEEEEEEESESSERTENSESSEEEEEEEEEEEEE (दिबाचा.) किताब-हिदायत बुतपरस्तियेजैन-बहुत अर्सेसे बनाई गइ थी, मगर बसबब कमफुरसतके छपवाकर जाहिर करना, नही बनाथा, अब जाहिर किई गई है. जैनमुनियोने जैनसमाजके लिये कई ग्रंथ बनाये है, में यह चार फार्मका एक छोटासा ग्रंथ बनाकर जैनोके सामने रखताहूं, इसको पहिये और अगर मूर्तिपूजाके बारेमे शक हो तो इसे बगौर देखिये! इसमें मुनि कुंदनमलजीके लेखका जवाब और मूर्तिपूजाके बारेमें ऊमदा दलिले दर्ज है. मूर्ति-उसदेवकी यादि दिलानेमें एक सहारा है, जैसे धर्मशास्त्र-सर्वज्ञके फरमानकी मूर्ति है, वैसे प्रतिमा सर्वज्ञके शरीरके आकारकी मूर्ति है. निराकारका शरीर नही होता और विना शरीरके निराकार आत्मा उपदेशभी नही देसकता, क्योंकि बोलनाचलना साकारकाही होसकता है, मूर्ति-प्रतिमा-प्रतिकृति-चैत्यअक्स और तस्वीर ये सब मूर्तिहीके तरीके है. मूर्तिको नहीं माननेवाले कई हुवे, मगर मूर्तिका मानना हमेशांस वला आया, धर्मसाधन करने के लिये मकान बनाना, दीक्षा दिलानेका जलसा करना, और अपने धर्मगुरूवोके दर्शनोंको जाना, अगर धर्मका काम है, तो तीर्थयात्रा जाना, मंदिरमूर्ति मानना, पूजना, धर्मका काम क्यों नहीं. इसीके बारेमें ऊमदा दलिले इस किताबमें देखोगे. ( ग्रंथकर्ता.) #昭四EK掀热热热热热熙熙必职恐农禁职职熙熙熙映照职必匹匹配照此些呢明明朗非照映地积的專热水恐群起熙那照的如無职职用昭熙與典晚防姓 92908198888999 9 99999999 For Private And Personal Use Only
SR No.020373
Book TitleHidayat Butparstiye Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherPruthviraj Ratanlal Muta
Publication Year1916
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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