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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्पूरादिवर्गः। है, और गरम, हलका, तथा श्वास, वायगोला, वात, कफ, और कृमि, इनकोंभी हरनेवाला है ॥ ९६ ॥ अथ एकागीनामगुणाः. मुरा गन्धकटी दैत्या सुरभिः शालपर्णिका। मुरा तिक्ता हिमा स्वादी लघ्वी पित्तानिलापहा ॥ ९७॥ ज्वरासृग्भूतरक्षोनी कुष्ठकासविनाशिनी। टीका-मुरा १, गन्धकटी २, दैत्या ३, सुरभि ४, शालपर्णिका ५, ये एकागीके नाम हैं. ये तिक्त है, और शीतल, मधुर, हलकी, तथा पित्तवातकों नाश करनेवाली है ॥ ९७ ॥ और ज्वर, रक्त, भूत, राक्षस, तथा कुष्ठ, कास, इनकी नाश करनेवाली है, ये इसलोकमें मरोडफली नामसे विख्यात है. अथ गन्धपलाशीनामगुणाः. शठी पलाशी षड्ग्रन्था सुव्रता गन्धमूलिका ॥ ९८॥ गन्धारिका गन्धवधूर्वधूः पृथुपलाशिका । भवेद्धपलाशी तु कषाया ग्राहिणी लघुः ॥ ९९ ॥ तिक्ता तीक्ष्णा च कटुका उष्णास्यमलनाशिनी। शोथकासव्रणश्वासशूलहिध्मग्रहापहा ॥ १०॥ टीका-ये सुगन्धद्रव्य काश्मीरदेशमें प्रसिद्ध है. और ये कचूरके किस्मसे होती है. शठी १, पलाशी २, षग्रंथा ३, सुव्रता ४, गंधमूलिका ५॥ ९८ ॥ गन्धारिका ६, गन्धवधृ ७, पृथुपलाशिका ८, ये गन्धपलाशीके नाम हैं; ये कसैली होती है, और दस्तकों रोकती है, और हलकी है ॥ ९९ ॥ और तीखी, कडवी, उष्ण होती है, मुखके मलको हरनेवाली है, सूजन, कास, घाव, श्वास, शूल, हिध्म, ग्रह, इनकी हारक है ॥ १०॥ अथ प्रियङ्गुगन्धप्रियङ्गनामगुणाः. प्रियङ्गुः फलिनी कान्ता लता च महिलाह्वया। गुन्द्रा गुन्द्रफला श्यामा विष्वक्सेनाङ्गनाप्रिया ॥ १०१॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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