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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे अथ नखनखीनामगुणाः. नखं व्याघ्रनखं व्याघ्रायुधं तच्चक्रकारकम् । नखं स्वल्पं नखी प्रोक्ता हनुहटविलासिनी॥ ८०॥ नखद्रव्यग्रहश्लेष्मवातास्त्रज्वरकुष्ठहत् । लघूष्णं शुक्रलं वयं स्वादु व्रणविषापहम् ॥ ८१॥ अलक्ष्मीमुखदौर्गन्ध्यहृत्पाकरसयोः कटुः। टीका-नख १, व्याघनख २, व्याघ्रायुध ३, चक्रकारक ४, छोटे नखकों नखी और हनुहट्टविलासिनीभी कहते हैं ॥ ८० ॥ नख द्रव्यग्रहनाशक है, कफ, वात, रक्त, ज्वर, कुष्ठ, इनका हरनेवाला है, और हलका है, शुक्रकों पैदा करता है, वर्णकारक है, मधुर है, घाव, विष, इनका जीतनेवाला है ॥ ८१॥ और अलक्ष्मी, मुखकी दुर्गन्धनाशक है, और ये पाकमें और रसमें कडवा होता है. अथ सुगंधवालानामगुणाः. बालं हीबेरबर्हिष्ठोदीच्यं केशाम्बुनाम च ॥ ८२ ॥ बालकं शीतलं रूक्षं लघु दीपनपाचनम् । हल्लासारुचिवीसर्पहृद्रोगामातिसारजित् ॥ ८३ ॥ टीका-बाल, ह्रीबेर, बर्हिष्ठ, उदीच्य, केश, अम्बुनाम, ये सुगंधवालाके नाम हैं ॥ ८२ ॥ ये शीतल, रूखा, दीपन, हलका, और पाचन है और जीमि चलानेकों अरुचि, अरु विसर्प, तथा हृदयरोग, आमातिसार, इनको हरनेवाला है८३ अथ वीरणनामगुणाः. स्याहीरणं वीरतरुर्वीरं च बहुमूलकम् । वीरणं पाचनं शीतं वान्तिहल्लघुतिक्तकम् ॥ ८४ ॥ स्तम्भनं ज्वरनुद्वान्तिमदजित्कफपित्तहत्।। तृष्णास्त्रविषवीसर्पकच्छ्रदाहव्रणापहम् ॥ ८५ ॥ टीका-जिस औषधिकी जड खश होती है, उस्को वीरण कहते हैं. वीरण १, वीरतरु २, वीर ३, बहुमूलक, ये वीरणके पांच नाम हैं. ये पाचन, शीतल, वमनका हरनेवाला, और हलका, तिक्त है ।। ८४॥ और स्तम्भन है, ज्वर, भ्रांति, For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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