SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५८ हरीतक्यादिनिघंटे टीका - देवदारुकी जातका एक गोंद होता है, उसें गूगल कहते हैं. श्रीवास १, सरलस्राव २, श्रीवेष्ट ३, वृक्षधूपक, ये इसके नाम हैं ॥ ४५ ॥ ये सरल और मधुर होता है, तिक्त, स्निग्ध, गरम, और कसेला, तथा सर है. पित्तहारक हैं, वातरोग, शिरोरोग, नेत्ररोग, स्वररोग, कफ, इनकों हरनेवाला है ॥ ४६ ॥ और राक्षसों का नाशक है, तथा पसीना, दुर्गन्धिता, जूआं खुजली, घाव, इनकभी हरनेवाला है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ रालनामगुणाः. रालस्तु शालनिर्यासस्तथा सर्जरसः स्मृतः ॥ ४७ ॥ देवधूपो यक्षधूपस्तथा सर्वरसश्च सः । रालो हिमो गुरुस्तिक्तः कषायो ग्राहको हरेत् ॥ ४८ ॥ दोषास्त्रस्वेदवीसर्पज्वरव्रणविपादिकाः । ग्रहभग्नाग्निदग्धाश्च शूलातीसारनाशनः ॥ ४९ ॥ टीका- राल १, साल २, निर्यास ३, सर्जरस ४ ॥ ४७ ॥ देवधूप ५, यक्षधूप ६, सर्जरस ये रालके नाम हैं. राल शीतल, भारी, तिक्त, कसेला, और ग्राहक है, ॥ ४८ ॥ और दोष, रक्त, पसीना, तथा विसर्प, ज्वर, घाव, और विपादिक इनको हरनेवाला है और शूल अतीसार इनकोंभी जीते है. ग्रह और टूटेहाकों तथा अग्निदग्धकों अच्छा करता है ॥ ४९ ॥ अथ कुन्दुरुसुगंधद्रव्यशल्लकीनिर्यासः कुन्दुरुस्तु मुकुन्दः स्यात् सुगन्धः कुन्द इत्यपि । कुन्दुरुर्मधुरस्तिक्तस्तीक्ष्णस्त्वच्यः कटुर्हरेत् ॥ ५० ॥ ज्वरस्वेदग्रहालक्ष्मीमुखरोगकफाऽनिलान् । टीका - सोनादररक्तके गोंदकों कुन्दरुगोंद कहते हैं. कुन्दरु १, मुकुन्द २, सुगन्धकुन्द ३, ये कुंदरुगोंद के तीन नाम हैं. ये मधुर, तिक्त, तीक्ष्ण, खचाके हितकारी है, और कडवा होता है ॥ ५० ॥ ज्वर, स्वेद, ग्रह, अलक्ष्मी, तथा मुखरोग, कफरोग, और रोगोंकोंभी हरनेवाला है. अथ शिलारसनामगुणाः. सिह्नकस्तु तुरुष्कः स्याद्यतो यवनदेशजः ॥ ५१ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy