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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीः। हरीतक्यादिनिघंटे करादिवर्गः। peop कर्पूरनामगुणाः. पुंसि क्कीबे च कर्पूरः सिताभ्रो हिमवालुकः । घनसारश्चन्द्रसंज्ञो हिमनामापि स स्मृतः॥१॥ कर्परः शीतलो वृष्यश्चक्षुष्यो लेखनो लघुः। सुरभिर्मधुरस्तिक्तः कफपित्तविषापहः ॥ २॥ टीका-पुल्लिंग और नपुंसकलिंगसें कर्पूर बना है. कर्पूर १, सिताभ्र २, हिमवालुक ३, घनसार ४, चंद्रसंज्ञ ५, यह हिमनामसेंभी कहा है ॥ १ ॥ ये शीतल, वृष्य, नेत्रोंका हितकारक, लेखन, और हलका है, सुगंधयुक्त, मधुर, और तिक्त होता है, और कफ, पित्त, विष, इनको हरनेवाला है ॥२॥ दाहतृष्णास्यवैरस्यमेदोदौर्गन्ध्यनाशनः । कर्पूरो द्विविधः प्रोक्तः पक्कापक्कप्रभेदतः ॥३॥ पक्कात् कर्पूरतः प्राहुरपक्कं गुणवत्तरम् । टीका-दाह, प्यास, मुखके स्वाद बिगडना, मेदका दुर्गंध, इनको हरनेवाला है, और कर्पूर दोप्रकारका होता है, कच्चा और पका ॥३॥ पक्के कर्पूरसे कच्चा कर्पूर अधिकगुणवाला होता है. __ अथ चीनसंज्ञकर्पूरनामगुणाः. चीनाकसंज्ञः कर्पूरः कफक्षयकरः स्मृतः ॥ ४ ॥ कुष्ठकण्डवमिहरस्तथा तिक्तरसश्च सः। टीका-चीनाक नाम चीनिया कर्पूरका है. वो कफकों और क्षयकों करनेवाला होता है ॥ ४॥ कुष्ठ और खुजली तथा वमन इनका रहनेवाला है, तथा तिक्त रसवाला होता है. For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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