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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे टीका-चनेका खार बहुत गरम और दीपन होता है दोतोंकों रोंढनेवाला है ॥ २५२ ॥ और लवणके अनुसारही रुचिकों पैदा करता है, तथा शूल, और अजीर्ण, विबंध, इनका हरनेवाला है. ___ अथ वयक्षार(जवाखार)गुणाः. पाकक्षारो यवक्षारो यावशूको यवाग्रजः॥ २५३ ॥ स्वर्जिकापि स्मृतः क्षारः कपोतः सुखवर्चकः। कथितः स्वर्जिकाभेदो विशेषज्ञैः सुवर्चिकः॥ २५४ ॥ यवक्षारो लघुः स्निग्धः सुसूक्ष्मो वह्निदीपनः । टीका-पाकक्षार १, यवक्षार २, यावशूक ३, यवाग्रज ४, ये जवाखारके नाम हैं ॥ २५३ ॥ और सज्जीकोंभी क्षार कहते हैं, कापोत ?, सुखवर्चक, ये सजीका भेद सुवचिक वैद्योंने कहा है ॥ २५४ ॥ जवाखार हलका, स्निग्ध, बहुत मूक्ष्म, अग्निकों करनेवाला है. निहन्ति शुलवातामश्लेष्मश्वासगलामयान् ॥ २५५ ॥ पांडुर्शीग्रहणीगुल्मानाहलीहहृदामयान । स्वर्जिकाल्पगुणा तस्माद्विशेषाद्गुल्मशूलहृत् ॥ २५६ ॥ सुवर्चिका खर्जिकावबोद्धव्या गुणतो जनैः।। टीका-और शूलकों, वातकों, आमकों, तथा कफकों, और श्वासकों, तथा गलेके रोगोंकों, हरता है ॥ २५५ ॥ और पांडु, बवासीर, संग्रहणी, वायगोला, तथा अफरा, प्लीह, और हृदयरोग, इनकोंभी हरनेवाला है. और सज्जी इस्से थोडे गुणवाली होती है, सज्जी विशेषकरिके वायगोलाकों हरती है ॥ २५६ ॥ और सोरा सज्जीके समान गुणवाला कहा है. अथ सौभाग्य(सुहागा)नामगुणाः. सौभाग्यं टङ्कणं क्षारो धातुद्रावकमुच्यते ॥ २५७ ॥ टंकणं वह्निद्रूक्षं कफवातपित्तकत् ।। टीका-सौभाग्य १, टंकण २, क्षार ३, धातुद्रावक ४, ये सुहागेके नाम हैं ॥ २५७ ॥ ये अग्निकों दीप्त करनेवाला है, और रूखा है, कफका हरनेवाला है, तथा वातपित्तकारक है. For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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