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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिवर्गः । रसोनमश्नन्पुरुषस्त्यजेदेतान्निरंतरम् ॥ २२६ ॥ टीका: - हृदयरोग, और जीर्णज्वर, तथा कोष्ठके शूल, विबंध, और वायगोला, अरुचि, तथा कास, ॥ २२४ ॥ शोथ, और कुष्ठ, मंदाग्नि, कृमि, वातरोग, श्वास, और कफ, इनकों हरनेवाला है. इस लहसन सेवन करनेवालेकों मद्य अर्थात मदिरा और मांस तथा खटाई ये हितकारक हैं ।। २२५ || और दंड पेलना, धूपमें फिरना, क्रोधकरना, बहुत जल पीना, दूध पीना, गुड खाना लहसनके सेन करनेवाला, इनकों यत्नसें त्याग दे || २२६ ॥ अथ पलांडु (प्याज) नामगुणाः. पलाण्डुर्यवनेष्टश्व दुर्गन्धो मुखदूषकः । पलाण्डुस्तु गुणैर्ज्ञेयो रसोनसदृशो गुणैः ॥ २२७ ॥ स्वादुः पाके रसोऽनुष्णः कफकृन्नातिपित्तलः । हरते केवलं वातं बलवीर्यकरो गुरुः ॥ २२८ ॥ ४३ टीका - पलांडु १, यवनेष्ट २, दुर्गन्ध २, मुखदूषक ४, ये प्याजके नाम हैं. जितने गुण लहसन में हैं उतनेही इसमें हैं ॥ २२७ ॥ और ये पाकमें मधुर, रस शीतल, और कफकों करनेवाला है, और पित्तकों अधिक करनेवाला नहीं, फक्त Eraat हरनेवाला है, और बलकों तथा वीर्यको बढानेवाला हैं, तथा गुरु हे ॥ २२८ ॥ अथ भल्लातक ( भिलावा) नामगुणाः. भल्लातकं त्रिषु प्रोक्तमरुष्को ऽरुष्करोऽग्निकः । तथैवामुखी भी वीरवृक्षच शोफरूत् ॥ २२९ ॥ भल्लातकफलं पक्कं स्वादुपाकरसं लघु । कषायं पाचनं स्निग्धं तीक्ष्णोष्णं छेदि भेदनम् ॥ २३० ॥ मेध्यं वह्निकरं हन्ति कफवातत्रणोदरम् । कुष्ठाशग्रहणीगुल्मशोफानाहज्वररुमीन् ॥ २३१॥ For Private and Personal Use Only टीका - भल्लातक तीनोंमें कहा है. अरुष्क, अरुष्कर, अग्निक, ये भिलावेके नाम हैं. इसीप्रकार अग्निमुखी, भल्ली, वीरवृक्ष, शोफकृत, येभी नाम कहे हैं
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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