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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिवर्गः। कफ, श्वास, कुष्ट, तथा दाह, कृमि, इनको हरनेवाला है ॥ २१२ ॥ और इसका फल बहुत गरम होता है. और कुष्ठ, पांडू, दाह, विष, वात, वायगोला, कास, कृमि, श्वास, इनका नाशक है, और कडवा कहागया है ॥ २१३ ॥ अतिविषानामगुणाः. विषा त्वतिविषा विश्वा शृङ्गी प्रतिविषारुणा । शुक्लकन्दा चोपविषा भङ्गुरा घुणवल्लभा ॥ २१४ ॥ विषा सोष्णा कटुस्तिक्ता पाचनी दीपनी हरेत् । कफपित्तातिसारामविषकासवमिकमीन् ॥ २१५ ॥ टीका-विषा १, अतिविषा २, विश्वा ३, भंगी ४, प्रतिविषा ५, अरुणा ६, शुक्लकंदा ७, उपविषा ८, भंगुरा ९, घुणवल्लभा, ये अतीसके नाम हैं ॥ २१४ ॥ ये थोडा गरम है, कडवी है, तिक्त और पाचन है, तथा दीपन है, और कफ, पित्त, अतिसार, आम, विष, तथा कास, वमन, कृमी, इनको हरनेवाला है ॥२१॥ अथ लोध्रनामगुणाः. लोध्रस्तिरीटकश्चैव शावरो मालवस्तथा । विनायः पट्टिकालोध्रः क्रमुकः स्थूलवल्कलः ॥ २१६ ॥ जीर्णपत्रो बृहत्पत्रः पट्टीलाक्षाप्रसादनः । लोध्रो ग्राही लघुः शीतश्चक्षुष्यः कफपित्तनुत् ॥ २१७ ॥ कषायो रक्तपित्तास्त्रज्वरातीसारशोथहृत् । टीका--लोध्र ?, तिरीटक २, शावर ३, मालव ४, ये लोध्रके नाम हैं. प. ट्टिका १, लोध्र २, कृमिक ३, स्थूलवल्कल ४, ॥२१६ ॥ जीर्णपत्र ५, बृहत्पत्र ६, पट्टी ७, लाक्षा ८, प्रसादन ९, ये पठानी लोधके नाम हैं. ये ग्राही, अल्प और शीतल है, नेत्रोंकों हितकारक है, कफपित्तको हरनेवाला है ॥ २१७ ॥ और कसेला है, तथा रक्तपित्त, ज्वर, अतीसार, और शोथ, इनको जीतनेवाला है. अथ लशुननामगुणाः. लशुनस्तु रसोनः स्यादुरगन्धो महौषधम् ॥ २१८ ॥ अरिष्टो म्लेच्छकन्दश्च यवनेष्टो रसोनकः। For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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