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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे फरोग और कासरोगको हरनेवाला है और स्वरकों अच्छा करनेवाला है, तथा लचाकोंभी अच्छी करनेवाला कहा है, और रुचिकों करनेवाला, हृदय, कंठ, और मुख इनका शोधन करनेवाला होता है ॥ १०५ ॥ अपरासुगंधानामगुणाः. स्थूलग्रंथिः सुगन्धा स्यात् ततोहीनगुणा स्मृता। टीका-मोठीगांठवाली वच सुगंध होती है और उस्से हीनगुणवाली होती है. अथ वचा(चोवचीनी)नामगुणाः. द्वीपान्तरवचा किञ्चितिक्तोष्णा वह्निदीप्तिकत् ॥ १०६॥ विबंधाध्मानशूलनी शकन्मूत्रविशोधिनी। वातव्याधिमपस्मारमुन्मादं तनुवेदनाम् ॥ १०७ ॥ व्यपोहति विशेषेण फिरङ्गामयनाशिनी । टीका-अब चोवचीनीके नाम तथा गुण लिखते हैं. अन्य द्वीपकी वचकों इसदेशमें चोवचीनी कहते हैं. ये चोवचीनी किंचित् तिक्त और उष्ण होती है, और अग्निकों दीपन करती है ॥ १०६॥ कविजियत अफरा और शूल इनको हरनेवाली है, तथा मल और मूत्रका शोधन करनेवाली है. और वातरोगोंकों, मृगीकों, उन्मादरोगकों, समस्त शरीरकी पीडाकों शमन करती है ॥ १०७ ॥ और अधिककरके फिरंगरोगका नाश करनेवाली है.. अथ हपुषानामगुणाः. तन्मध्ये प्रथमं फलं मत्स्यसदृशं विस्त्रगन्धं द्वितीयमश्वत्थफलदृशं मत्स्यगंधं तयोर्नामानि गुणाश्च. हपुषा पुष्पवत्सा च पराश्वत्थफला मता ॥ १०८॥ मत्स्यगंधा प्लीहहन्त्री विषघ्नी ध्वांक्षनाशिनी। .. हपुषा दीपनी तिक्ता मृदूष्णा तुवरा गुरुः ॥ १०९ ॥ पित्तोदरसमीरार्थीग्रहणीगुल्मशूलहृत् । पराप्येतद्गुणा प्रोक्ता रूपभेदी द्वयोरपि ॥ ११०॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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