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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तैलसंधानमद्यमधुइक्षुवर्गः। मद्य अभिष्यन्दि त्रिदोषको करनेवाला सर अहृद्य पुष्ट दाहकों करनेवाला दुर्गन्ध विशद भारी ॥ ५७ ॥ और वोही जीर्ण पुराना रुचिकों करनेवाला कृमि कफ वात इनको हरता हृद्य सुगन्धि गुणयुक्त हलका शोथोंका शोधन करनेवालाहै ॥ ५८॥ मद्य पीनेवाले सात्विकादियोंके चेष्टाविशेष साविकके गीत हास्य आदि राजसमें साहसादिक ॥५९॥ तामसमें निन्द्य कर्म और निद्रा इनको मदिरा करतीहै विधि और मात्रासें समयपर हित अन्तके साथ बलानुसार हर्षयुक्त हुवा जो पीताहै उसको मद्य अमृतके समान जानना चाहिये ।। ६० ॥ मद्य स्वभावसें जैसे अन्न वैसे कहाहै लेकिन वेतरकीसे पीयाहुवा रोगकों करताहै और तरकीवके साथ पीयाहुवा अमृतके समान होताहै ॥ ६१ ॥ अनन्तर मद्योंका गन्धनाशन उपाय नागरमोथा एलालुक कुट जीरा धीनयां इलायची इनकों चवाकर जो सभामें बोले उसकी स्वाभाविक मुखकी गन्धि होतीहै और दुर्गन्ध तथा मद्य लसुन आदिकी गन्ध निश्चय दूर होतीहै ॥ ६२॥ इति संधानवर्गः। अथ मधुवर्गे मधुनो नामानि गुणाश्च. मधुमाक्षीकमाध्वीकक्षौद्रसारघ्यमीरितम् । मक्षिका वरटी भृङ्गवान्तपुष्परसोद्भवम् ॥ ६३ ॥ मधु शीतं लघु स्वादु रूक्षं ग्राहि विलेखनम् । चक्षुष्यं दीपनं स्वयं व्रणशोधनरोपणम् ॥ ६४ ॥ सौकुमार्यकरं सूक्ष्म परं स्रोतोविशोधनम् । कषायानुरसं ह्रादि प्रसादजनकं परम् ॥ ६५॥ वयें मेधाकरं वृष्यं विशदं रोचनं हरेत् । कुष्ठार्शःकासपित्तास्त्रकफमेहक्कमकमीन ॥ ६६ ॥ मेदस्तृष्णा वमिश्वासहिकातीसारविडग्रहान् । दाहक्षतक्षयांस्तत्तु योगवाह्यल्पवातलम् ॥ ६७ ॥ माक्षिकं भ्रामरं क्षौद्रं पैत्तिकं छात्रमित्यपि । आय॑मौहालकं दालमित्यष्टौ मधुजातयः ६८ ॥ टीका-अथ मधुवर्गः उसमें मधुके नाम और गुण कहतेहै मधु माक्षीक माध्वीक क्षौद्र सारघ्य यह मधुके नामहैं ॥६३॥ मख्खी बरटा भँवरा इनके गेराहुवा पुष्परससे For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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