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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे चंद्रशूरनामगुणाः. चन्द्रिका चर्महन्त्री च पशुमेहनकारिका ॥ ९६ ॥ नन्दिनी कारवी भद्रा वासपुष्पा सुवासरा । चंद्रशूरं हितं हिक्कावात श्लेष्मातिसारिणाम् ॥ ९७ ॥ असृग्वातगदद्वेषी बलपुष्टिविवर्धनम् । टीका - अब चंद्रशूरके नाम तथा गुण लिखते हैं. चंद्रिका, चर्महंत्री, पशुमेहनकारिका ॥ ९६ ॥ नन्दनी, कारवी, भद्रा, वासपुष्पा, सुवासरा, ये ८ चंद्रशुरके नाम हैं. फिर ये चंद्रशूर हिचकीरोगकी, वातकफजनितरोगोंकी, तथा अतीसाररोगोंकी हित करनेवाली है ॥ ९७ ॥ रक्तरोगोंकों, वातरोगोंकों हरनेवाली तथा रक्तवातकों हरनेवाली, और बल तथा पुष्टिकों बढानेवाली है. मेथिकादिचतुष्टयगुणाः. मेथिका चंद्रशूरश्च कालाजाजी यवानिका ॥ ९८ ॥ एतच्चतुष्टयं युक्तं चतुर्बीजमिति स्मृतम् । तच्चूर्णं भक्षितं नित्यं निहन्ति पवनामयम् ॥ ९९ ॥ अजीर्ण शूलमाध्मानं पार्श्वशूलं कटिव्यथाम् । टीका - अब चार दानेके लक्षण और गुण लिखते हैं. मेथी, और चंद्रशूर, कालाजिरा, तथा अजमायन ॥ ९८ ॥ इन चारोंकों समान लेकर मिलानेसें चारदाना तथा चतुर्बीज कहते हैं. फिर इसके चूर्णकों नित्य सेवनकरनेसें बातके रोगोकों ॥ ९९ ॥ और अजीर्णकों, तथा शूलकों, अफराकों, तथा पसलीके दर्दकों और कमरकी पीडाको इत्यादि रोगोंकों हरता है. अथ हिंगुनामगुणाः. सहस्रवेधि जतुकं बाल्हीकं हिंगु रामठम् ॥ १०० ॥ हिंगुष्णं पाचनं रुच्यं तीक्ष्णं वातवलासहृत् । शूलगुल्मोदरानाहरूमिघ्नः पित्तवर्धनः ॥ १०१ ॥ टीका -- अब हिंगके नाम तथा गुण लिखते हैं. सहस्रवेधि, जतुक, बाल्हीक, For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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