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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तैलसंधानमद्यमधुक्षुवर्गः । ३३१ भेदन शीघ्र पाक रूखे परम कफ हरते है और खट्टे दीपन रुचिकों करनेवाले पाचन आशुकारी ॥ ४७ ॥ तीक्ष्ण सूक्ष्म विशद व्यवायी और विकाश होते हैं. अथारिष्टस्य सुरायाश्च गुणाः. । पौषधाम्बुसिद्धं यन्मयं तत्स्यादरिष्टकम् ॥ ४८ ॥ अरिष्टं लघु पाकेन सर्वतश्च गुणाधिकम् । अरिष्टस्य गुणा ज्ञेया बीजद्रव्यगुणैः समाः ॥ ४९ ॥ शालिषष्टिकपिष्टादि कृतं मद्यं सुरा स्मृता । सुरा गुर्वी बलस्तन्यपुष्टिमेदः कफप्रदा ॥ ५० ॥ ग्राहिशोथं च गुल्माशग्रहणीमूत्रकृच्छ्रनुत् । पुनर्नवा शिलापिष्टैर्वारुणी विहिता स्मृता ॥ ५१ ॥ संहितैस्तालखर्जूररसैर्या सापि वारुणी । सुरावद्वारुणी लघ्वी पीनसाध्मानशूलनुत् ॥ ५२ ॥ इक्षोः पक्करसैः सिद्धः सीधुः पक्करसश्च सः । आमैस्तैरेव यः सीधुः स च शीतरसः स्मृतः ॥ ५३ ॥ सीधुः परसैः श्रेष्ठः स्वराग्निबलवर्णकृत् । वातपित्तकरः सद्यः स्नेहनो रोचनो हरेत् ॥ ५४ ॥ विबन्धमेदः शोफार्शः शोफोदरकफामयान् । तस्मादल्पगुणः शीतः रसः संलेखनः स्मृतः ॥ ५५ ॥ टीका - पक औषधका जो सिद्ध जल है उसकों मद्य कहते हैं और वोह अरिष्ट कहै ॥ ४८ ॥ लोक मद्य कहतेहैं जैसे द्राक्षारिष्ट दशमूलारिष्ट बबूलारिष्ट इसप्रकार अष्ट पाक करके हलका और सबसें गुणमें अधिक होता है बीजद्रव्यगुणके समान अरिटका गुण जानना चाहिये ॥ ४९ ॥ सांठी चावलकी पिट्ठी आदिसें बनायाहुवा मद्यकों सुरा कहीहै सुरा भारी बल दुग्ध पुष्टि मेद कफकों करनेवाली ॥ ५० ॥ काविज सूजन वायगोला ववासीर संग्रहणी मूत्रकृच्छ्र इनकों हरती है अब मुराका भेद वारुणी उसका लक्षण और गुण पुनर्नवा शिलापिष्ट विहित वारुणी कहीं है ॥ ५१ ॥ और ताड खजूर इनके सन्धानसें जो होती है वोभी वारुणी है सुराके For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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