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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुग्धदधितक्रघृतमूत्रवर्गः। कण्डूकिलासगदशूलमुखाक्षिरोगान् गुल्मातिसारमरुदामयमूत्ररोधान् । कासं सकुष्ठजठरक्रिमिपाण्डुरोगान् गोमूत्रमेकमपि पीतमपाकरोति ॥ ११७॥ सर्वेष्वपि च मूत्रेषु गोमूत्रं गुणतोऽधिकम् ॥ ११८॥ अतोऽविशेषात्कथने मूत्रं गोमूत्रमुच्यते । प्लीहोदरश्वासकासशोथव!ग्रहापहम् ॥ ११९॥ शूलगुल्मरुजानाहकामलापाण्डुरोगहृत् । कषायं तितं तीक्ष्णं च पूरणात्कर्णशूलनुत् ॥ १२० ॥ नरमूत्रं गरं हन्ति सेवितं तद्रसायनम् । रक्तपामाहरं तीक्ष्णं सक्षारलवणं स्मृतम् ॥ १२१॥ गोजाविमहिषीणां तु स्त्रीणां मूत्रं प्रशस्यते । खरोष्ट्रेभनराश्वानां पुंसां मूत्रं हितं स्मृतम् ॥ १२२ ॥ टीका-अथ गोमूत्रका गुण गोमूत्र कटु तीखा उष्ण क्षार तिक्त कषाय हलका अग्निदीपन मेध्य पित्तको करनेवाला कफवातकों हरता ॥ ११५ ॥ शूल वायगोला उदर आनाह कंडू नेत्ररोग मुखरोग इनको हरनेवालाहै किलासरोग आमवात बस्तिपीडा कुष्ठरोग इनकों हरताहै ॥ ११६ ॥ कास श्वास इनको हरता सूजन कामला पाण्डुरोग इनको हरताहै खुजली किलासरोग शूल मुखरोग नेत्ररोग गुल्म अतिसार वातरोग मूत्ररोध ॥ ११७ ॥ कास कुष्टके सहित उदररोग क्रिमि पाण्डुरोग इनको एक गोमूत्र पियाहुवा हरता है सब मूत्रोंमें गोमूत्र गुणमें अधिकहै ११८ इसवास्ते विशेषकरके कहनेमें मूत्र गोमूत्रकों कहतेहैं प्लीह उदर श्वास कास सूजन मल ग्रह इनकों हरताहै ॥ ११९ ॥ शूल वायगोला पीडा अफारा कामला पाण्डुरोग इनकों हरता कसेला तिक्त तीखा डालनेसें कर्णशूलकों हरताहै ॥ १२० ॥ मनुष्यका मूत्र विषकों हरताहै और सेवन कियाहुवा वोह रसायनहै और रक्त पामाकों हरता तीखा क्षार लवणयुक्त कहाहै ॥१२१॥ गाय बकरी भैंस इनस्त्रियोंका मूत्र प्रशस्तहै और गद्धा ऊंट हाथी मनुष्य घोडा इनमें नरोंका मूत्र हित कहाहै ॥१२२॥ इति हरीतक्यादिनिघंटे दुग्धदधितक्रघृतमूत्रवर्गः समाप्तः । For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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