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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra thora www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shri Kailassagarsun दुग्धदधितघृतमूत्रवर्गः। नवनीतं हितं गव्यं वृष्यं वर्णवलाग्निरुत् ॥ ८९॥ संग्राहि वातपित्तामृक् क्षयार्थोऽदितकासहृत् । तद्धितं बालके वृद्धे विशेषादमृतं शिशोः ॥ ९० ॥ नवनीतं महिष्यास्तु वातश्लेष्मकरं गुरु। दाहपित्तश्रमहरं मेदः शुक्रविवर्धनम् ॥ ९१ ॥ दुग्धोऽत्थं नवनीतं तु चक्षुष्यं रक्तपित्तनुत् । वृष्यं बल्यमतिस्निग्धं मधुरं ग्राहि शीतलम् ॥ ९२॥ नवनीतं तु सद्यस्कं स्वादु ग्राहि हिमं लघु । मेध्यं किञ्चित्कषायाम्लमीषत्तक्रांशसंक्रमात् ॥ ९३ ॥ सक्षारकटुकाम्लत्वाच्छद्यःकुष्टकारकम् । श्लेष्मलं गुरु मेदस्यं नवनीतं चिरन्तनम् ॥ ९४ ॥ टीका-अनन्तर माखनके गुण उसमें माखनके नाम और गुण मृक्षण सरज हैयङ्गवीन नवनीत यह माखनके नाम हैं गायका माखन पथ्य शुक्रकों करनेवाला वर्ण बल अग्निकों करनेवाला ॥८९ ॥ काविज वात पित्त रक्तक्षय बवासीर अदित कास इनकों हरताहै वोह बालक वृद्धको हितहै विशेषकरके वालककों अमृतके समान है ॥९०॥ भैसका माखन वात कफको करनेवाला भारी दाह पित्त श्रमकों हरता मेद शुक्रकों बढानेवाला है ॥ ९१॥ अनन्तर दूधके माखनका गुण दूधका माखन नेत्रके हित रक्तपित्तकों हरता शुक्रकों करनेवाला बलके हित बहुत चिकना मधुर काविज शीतलहै ॥ ९२॥ अनन्तर ताजे माखनका गुण ताजा माखन मधुर काविज शीतल हलका कान्तिकों करनेवाला कुछ एक कसेला थोडेमठेके अंश मिलनसें ॥ ९३ ।। अनन्तर पुराने माखनका गुण क्षारके सहित कटुक खट्टापन होनेसें वमन ववासीर कुष्ठ इनकों करनेवालाहै कफकों करनेवाला भारी मेदकों करनेवाला पुराना माखन है ॥ ९४ ॥ इति नवनीतवर्गः. अथ घृतस्य नामानि गुणाश्च. घृतमाज्यं हविः सर्पिः कथ्यन्ते तद्गुणा अथ । घृतं रसायनं स्वादु चक्षुष्यं वह्निदीपनम् ॥ ९५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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