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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे अथ तक्रस्य नामानि गुणाश्च. घोलं तु मथितं तत्रमुदश्विच्छच्छिकापि च । ससरं निर्जलं घोलं मथितं त्वसरोदकम् ॥ ७१ ॥ तक्रं पादजलं प्रोक्तमुदश्वित्त्वर्धवारिकम् । छच्छिका सारहीना स्यात्स्वच्छा प्रचुरवारिका ॥ ७२ ॥ घोलं तु शर्करायुक्तं गुणैर्ज्ञेयं रसालवत् । वातपित्तहरं ह्लादि मथितं कफपित्तनुत् ॥ ७३ ॥ तकं ग्राहि कषायाम्लं स्वादुपाकरसं लघु । वीर्योष्णं दीपनं वृष्यं प्रीणनं वातनाशनम् ॥ ७४ ॥ ग्रहण्यादिमतां पथ्यं भवेत्सङ्ग्राहि लाघवात् । किञ्चित्स्वादुविपाकित्वान्न च पित्तप्रकोपनम् ॥ ७५ ॥ कषायोष्णं दीपनं च प्रीणनं वातनाशनम् । कषायोष्णा विपाकित्वाद्रौक्ष्याच्चापि कफापहम् ॥ ७६ ॥ टीका - अब तवर्ग कहता हूं उसमें मट्ठेके अलग नाम औ लक्षण तथा गुण घोल मथित तक्र उदशिवत छच्छिका यह मट्ठेके नाम हैं पूर्वोक्त सरके सहित निर्जलकों घोल कहतेहैं और मथित जिसमें सर और जल नहो उसको कहते हैं ॥ ७१ ॥ जिसमें चौथाई जल होता है उसकों तक कहा है और जिसमें आधा जल होता है उसको उदश्वित् कहाहै तथा सर हीन स्वच्छ बहुत जलसें युक्तकों छछिका कहते हैं ॥ ७२ ॥ शर्करायुक्त घोल रसालके गुणमें जानना चाहिये महया इसप्रकार लोकमें कहते हैं छाछ इस प्रकार लोक में कहतेहैं ॥ ७३ ॥ मथित वातपित्तकों हरता हादीकफपित्तकों हरता है तक्र काविज कसेला खट्टा पाकरसमें मधुर हलका वीर्यमें उष्ण दीपन शुक्रकों करनेवाला प्रीणन वात हरता है ||७४ || और संग्रहणीवालेकों हित है महा काबिज होता है हलकेपनसें मधुर पाक होनेसें पित्तप्रकोपकरनेवाला नहीं है || ७५ || कसेला उष्ण दीपन वृष्य प्रीणन वातहरता है कसेला उष्ण विपाक नहोसें और तभी कफ हरता है ।। ७६ ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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