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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुग्धदधितक्रघृतमूत्रवर्गः। __३११ वदन्ति पेयं निशि केवलं पयो भोज्यं न तेनेह सहौदनादिकम् । भवत्यजीर्णे निशि पीतशर्करा क्षीराल्पपानस्य तु शेषमुत्सृजेत् ४० विदाहीन्यन्नपानानि दिवा भुंक्ते हि यन्नरः। तद्विदाहप्रशान्त्यर्थं रात्रौ क्षीरं सदा पिबेत् ॥४१॥ दीप्तानले कशे पुंसि वातवृद्धे पयःप्रिये । मतं हिततमं पथ्यं सद्यः शुक्रकरं यतः ॥ ४२॥ क्षीरं गव्यमथाजं वा कोष्णं दण्डाहतं पिबेत् । लघु वृष्यं ज्वरहरं वातपित्तकफापहम् ॥ ४३॥ गोदुग्धप्रभवं किंवा छागीदुग्धसमुद्भवम् । भवेदेतत्रिदोषघ्नं रोचनं बलवर्धनम् ॥४४॥ वह्नवृद्धि करं वृष्यं सद्यस्तृप्तिकरं लघु । अतीसारेऽग्निमान्ये च ज्वरे जीर्णे प्रशस्यते ॥४५॥ विवर्ण विरसं चाम्लं दुर्गन्धं ग्रथितं पयः। वर्जयेदम्ललवणयुक्तं दोषादिहृद्यतः ॥ ४६॥ टीका-अनन्तर खांडआदिसें युक्त दुग्धका गुण खांडके सहित दुग्ध कफकों करनेवाला वातहरता है चीनी और मिश्रीके युक्त शुक्रकों करनेवाला त्रिदोषकों हरताहै ॥ ३६ ॥ गुडके सहित मूत्रकृच्छ्रकों हरता और परम पित्तकफकों करनेवालाहै रात्रिमें चन्द्रगुणकी अधिकतासें तथा व्यायाम करनेसें ॥ ३७॥ सवेरेका दूध प्रायः सायंकालका भारी शीतल होताहै सूर्यके किरणोंके आघातसें और व्यायाम अग्नि इनके सेवनसें ॥ ३८ ॥ सवेरेका हलका वात कफको हरताहै अनन्तर दुग्धसेवन समयमें गुण विशेषकों कहतेहै पहिले पहरमें पीयाहुवा दूध शुक्रकों करनेवाला पुष्ट अग्निकों दीपन करनेवाला और मध्यान्हमें बल करनेवाला कफ हरता पित्त हरता दीपन होताहै बाल अवस्थामें वृद्धि करनेवाला क्षयकर वृद्ध अवस्थामें शुक्रकों करनेवाला और रातोंमें हित अनेक दोषोंकों शमन करनेवाला दूधहै इसवास्ते सदा सेवन किया जाताहै ॥ ३९॥ कहतेहैं की रातमें केवल दूध पीना चाहिये उसकेसाथ चावल आदिक न खाने चाहिये अजीर्णके होनेमें रातमें थोडा दूध शकर पीनेवालेके वाकी सब निकल जाता है ॥४०॥ जिससे मनुष्य वि For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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