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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिवर्गः। अथ (पारसीक) खुरासानीगुणाः. पारसीकयवानी तु यवानीसदशी गुणैः ॥ ८०॥ विशेषात्पाचनी रुच्या ग्राहिणी मादिनी गुरुः। टीका-ये खुरासानी अजमायन अजमायनकेही सदृश गुणवाली होती है, अर्थात् जो गुण अजमायनके हैं वोही खुरासानी अजमायनके जानो ॥८०॥ विशेपकरिके पाचन करनेवाली, और रुचिकों करनेवाली, और ग्राहणी, तथा मद करनेवाली, और भारी होती है. शुक्लजीरा कालाजीरा कलोंजीनामगुणाः. जीरको जरणोऽजाजी कणा स्यादीर्घजीरकः ॥ ८१ ॥ कृष्णजीरं सुगंधश्च तथैवोद्गारशोधनः । कालाऽजाजी तु सुषवी कालिका चोपकालिका ॥ ८२ ॥ पृथ्वीका कारवी पृथ्वी पृथुः कृष्णोपकुंचिका। उपकुंची च कुंची च बृहजीरक इत्यपि ॥ ८३ ॥ टीका-अब सफेद जीरा और काला जीरा तथा कलोंजी इनके नाम गुण लिखते हैं. जीरक, जरण, अजाजी, कणा, दीर्घजीरक, ये पांच सफेदजीरेके नाम हैं ॥८१॥ कृष्णजीरक, सुगंध, उद्गार, शोधन, कालाजानी, सुषवी, कालिका, उपकालिका, ॥८२॥ पृथ्वीका, कारवी, पृथ्वी, पृथु, कृष्णा, उपकुंचिका, ये चवदह कृष्णजीरेके नाम है. उपकुंची, कुंची, बृहज्जीरक, येभी जीरेके नाम हैं ॥ ८३ ॥ जीरकत्रितयं रूक्षं कटूष्णं दीपनं लघुः। संग्राही पित्तलं मेध्यं गर्भाशयविशुद्धिकत् ॥ ८४ ॥ ज्वरघ्नं पाचनं वृष्यं बल्यं रुच्यं कफापहम् । चक्षुष्यं पवनाध्मानगुल्मछतिसारहृत् ॥ ८५ ॥ टीका-फिर ये तीनों जीरे रूखे, कडवे, तथा गरम, दीपन, और हलके होते हैं, और ग्राही हैं, तथा पित्तकारक हैं, बुद्धिको बढानेवाले और गर्भाशयकी शुद्धि करनेवाले हैं ॥ ८४ ॥ और ज्वरके नाश करनेवाले पाचन तथा पुष्टीकों करनेवाले तथा बलकों देनेवाले और रुचिकों करनेवाले होते हैं. कफको नाश करनेवाले हैं For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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