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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९६ हरीतक्यादिनिघंटे हुत रोगोंकों हरता है साधारण जल मधुर दीपन शीतल हलका ॥ ३० ॥ तर्पण रोचन होता है और तृषा दाह तीनों दोष इनकों हरता है. अथ नादेयस्य औद्भिदस्य लक्षणं गुणाश्च. नद्या नदस्य वा नीरं नादेयमिति कीर्त्तितम् ॥ ३१ ॥ नादेयमुदकं रूक्षं वातलं लघु दीपनम् । अनभिष्यन्दि विशदं कटुकं कफपित्तनुत् ॥ ३२ ॥ नद्यः शीघ्रवहा लघ्व्यः सर्वाश्वाप्यमलोदकाः । गुर्व्यः शैवलसंछन्ना मन्दगाः कलुषाश्च याः ॥ ३३ ॥ हिमवत्प्रभवाः पथ्या नद्योऽश्माहतपाथसः । गङ्गाशतदूसरयूयमुनाद्या गुणोत्तमाः ॥ ३४ ॥ सद्यः शैलभवा नद्यो वेणा गोदारीमुखाः । कुर्वन्ति प्रायशः कुष्ठमीषद्वातकफावहाः ॥ ३५ ॥ नदीसरस्तडागस्थे कूपप्रस्त्रवणादिजे । उदके देशभेदेन गुणान् दोषांश्च लक्षयेत् ॥ ३६ ॥ विदार्य भूमिं निर्माय महत्या धारया स्त्रवेत् । ततोऽयमद्भिदं नाम वदन्तीति महर्षयः ॥ ३७ ॥ औद्भिदं वारि पित्तघ्नमविदाह्यतिशीतलम् । प्रीणनं मधुरं बल्यमीषद्वातकरं लघु ॥ ३८ ॥ टीका - नदका अथवा नदीका जो जल है उसकों नादेय ऐसा कहा हैं || ३१ ॥ नादेय जल रूखा वातकों करनेवाला हलका दीपन अनभिष्यन्दि विशद कटुक कफपित्तकों हरता कहाहै ॥ ३२ ॥ शीघ्र वहनेवाली और स्वच्छ उदकवाली सब नदियां हलकी होती हैं मेवार मेंढकी सन्द चलनेवाली और जो काली होती है वोह भारी ॥ ३३ ॥ हिमालयसें निकली और पाषाणसहित जलवाली नदियां हित हैं गङ्गा सतलुज सरयू यमुना आदि गुणमें उत्तम हैं ॥ ३४ ॥ सय पहाडसें निकली door गोदावरी प्रमुख प्रायः कुष्ठकों करती है और कुछ वातकफकोंभी करती है ३५ नदी सरोवर तालाव इनका और कुँवा झरना आदिके जलोंमें देशभेदसें गुणदो For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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