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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २७६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे अथ शुद्धमांसप्रकाराः. पाके पात्रे घृतं दद्यात्तैलं च तदभावतः । तत्र हिंगु हरिद्रां च भर्जयेत्तदनन्तरम् ॥ ७८ ॥ छागादेरस्थिरहितं मासं तत्खण्डितं ध्रुवम् । धौतं निर्गालितं तस्मिन्घृते तद्भर्जयेच्छनैः ॥ ७९ ॥ सिद्धयोग्यं जलं दत्त्वा लवणं तु पचेत्ततः । सिद्धे जलेन संपिष्य वेसवारं परिक्षिपेत् ॥ ८० ॥ द्रव्याणि वेसावारस्य नागवल्लीदलानि च । तण्डुलाश्च लवङ्गानि मरिचानि समासतः ॥ ८१ ॥ अनेन विधना सिद्धं शुद्धमांसमिति स्मृतम् । शुद्धमांसं परं वृष्यं बल्यं रुच्यं च बृंहणम् ॥ ८२ ॥ त्रिदोषशमकं श्रेष्ठं दीपनं धातुवर्धनात् । टीका - उस्सें शुद्धमांस सुधवा इसप्रकार लोकमें कहते है पकानेके वरतनमें घृत डाले उस्के अभावमें तेल डालै उसमें हींग हलदीकों भूनें और वाद ॥ ७७ ॥ बकरे आदिका बेहड्डीका मांस टुकड़े कियाहुवा और धोकै साफ कियाहुवा उस धीमें उसको धीरेधीरे भूने ॥ ७८ ॥ उसमें पकनेके योग्य जल देकर और लवण देकर पावै उसके अनन्तर सिद्धहुवेमें पानीसें गरम मसाला पीसकर उसमें डालै ७९ मसालेकी वस्तु पान चावल लवंग मरिच ये संक्षेपसें है ॥ ८० ॥ इसविधिसें सिद्ध कियाहवा शुद्धमांस ऐसा कहा है शुद्ध मांस परम शुक्रकों करनेवाला बलकारी रु चिकों करनेवाला पुष्ट || ८१ ।। ८२ ।। त्रिदोषका शमक श्रेष्ठ दीपन धातुबढानेसें है. अथ सेहुण्डकं अखनीनामगुणाः. छागादेर्मांसमूर्वादेः कुट्टितं खण्डितं पुनः ॥ ८३ ॥ शुद्ध मांसविधानेन पचेदेतत्सहार्द्रकम् । सहार्द्रकं गुणैर्ग्रन्थे शुद्धमांसगुणं स्मृतम् ॥ ८४ ॥ पाकपात्रे घृतं दत्त्वा हरिद्राहिङ्गुभर्जयेत् । For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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