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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मांसवर्गः । २६३ धारण वातकों करनेवाली कही है ॥ ११७ ॥ अथ गरई मधुर तिक्त कसेली वातपित्तकों हरती कफ हरती रुचिकों करनेवाली दीपन बलवीर्यकों करनेवाली है ॥ ११८ ॥ मगुरी वातहरती बलकेहित शुक्रकों करनेवाली कफकारक हलकी है टेंगरा कान्तिकों करनेवाली और प्रमेहकों हरती है ।। ११९ ।। तथा वातपित्तकर और परम रुचिकों करनेवाली कहीहै अथ पोठी तिक्त कडवी मधुर शुक्रकों करनेवाली है और कफवातकों हरनेवाली है ॥ १२० ॥ चिकनी मुख कंठ इनके रोगोंकों हरती रुचिकों करनेवाली हलकी कही है अथ छोटी मछलियां रसमें मधुर तीनों दोषोंकों हरती ।। १२१ ॥ पाकमें हलकी रुचिकों करनेवाली बलकों देनेवाली वे हित है अथ बहुत छोटी पुरुपलकों हरती रुचिकों करनेवाली कास वातकों हरती है ॥ १२२ ॥ अथ मत्स्याण्डादिमत्स्यानां गुणाः. मत्स्यगर्भो भृशं वृष्यः स्निग्धः पुष्टिकरो लघुः । कफमेहप्रदो बल्यो ग्लानिरुन्मेहनाशनः ॥ १२३ ॥ शुष्कमत्स्या नवा बल्या दुर्जरा विविबन्धिनः । दग्धमत्स्यो गुणैः श्रेष्ठः पुष्टिकद्दलवर्धनः । कौपमत्स्याः शुक्रमूत्र कुष्ठ श्लेष्मविवर्धनाः ॥ १२४ ॥ सरोजा मधुराः स्निग्धा बल्या वातविनाशनाः । नादेया वृंहणा मत्स्या गुरवोऽनिलनाशनाः ॥ १२५ ॥ रक्तपित्तकरा वृष्याः स्निग्धोष्णाः स्वल्पवर्चसः । चौञ्जाः पित्तकराः स्निग्धा मधुरा लघवो हिमाः ॥ १२६॥ ताडागा गुरवो वृष्याः शीतला बलमूत्रदाः । ताडागावक्षिप्तजाता बलायुर्मतिदृक्कराः ॥ १२७ ॥ हेमन्ते कूपजा मत्स्याः शिशिरे सारसा हिताः । वसंते ते तु नादेया ग्रीष्मे चौअसमुद्भवाः ॥ १२८ ॥ तडागजाता वर्षासु तास्वपथ्या नदीभवाः । नैर्झराः शरदि श्रेष्ठा विशेषोऽयमुदाहृतः ॥ १२९ ॥ इति श्रीहरीतक्यादिनिघंटे मांसवर्गः समाप्तः । For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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