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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मांसवर्गः। २६१ अथ शिलींध्रमोचकाशृंगीहिल्लसगुणाः, ऊर्ध्वजत्रुगतानोगान्हन्याद्रोहितमुण्डकम् । सिलीन्ध्रः श्लेष्मलो बल्यो विपाके मधुरो गुरुः ॥ १०७॥ वातपित्तहरो हृद्य आमवातकरश्च सः। भक्कुरो मधुरः शीतो वृष्यः श्लेष्मकरो गुरुः ॥ १०८॥ विष्टम्भजनकश्चापि रक्तपित्तहरः स्मृतः । मोचका वातबल्या बृंहणी मधुरा गुरुः ॥ १०९ ॥ पित्तहृत्कफरुद्रुच्या वृष्या दीप्तानये हिता। पाठिनः श्लेष्मलो बल्यो निद्रालुः पिशिताशनः॥११०॥ दूषयेद्रुधिरं पित्तकुष्ठरोगं करोति च । श्रृंगी तु वातशमनी स्निग्धा श्लेष्मप्रकोपनी ॥ १११ ॥ रसे तिक्ता कषाया च लध्वी रुच्या स्मृता बुधैः । इल्लसो मधुरः स्निग्धो रोचनो वन्हिवर्धनः ॥ ११२ ॥ पित्तहत्कफळत्किञ्चिल्लघुर्वृष्योऽनिलापहः।। टीका-सिलन्ध कफकों करनेवाली बलके हित विपाकमें मधुर भारी ॥१०७॥ वातपित्तकों हरती हृद्य और वोह आमवातकों करनेवालीहै भुक्कुर मधुर शीतल शुक्रकों करनेवाली कफकारक भारी होतीहै ॥१०८॥ और विष्टम्भजनक तथा रक्तपित्तकों हरतीभी वहींहै मोचिका वात हरती बलकों करनेवाली पुष्ट मधुर भारी ॥ १०९॥ पित्तहरती कफकों करनेवाली और दीप्ताग्निवालेको हितहै पोठियावोरी मठना कफकों करनेवाली बलके हित निद्राको करनेवाली है और मांस खानेवालेके रुधिरको बिगाडतीहै ॥ ११० ॥ तथा पित्त और कुष्ठरोगकोंभी करतीहै सींगी वातकों शमन करनेवाली चिकनी कफप्रकोप करनेवाली रसमें तिक्त कसेली रुचिकों करनेवाली पंडितोंने कहीहै ॥१११॥ हीलसा मधुर चिकनी रुचिकों करनेवाली दीपन ॥११२॥ पित्तहरती कफकों करनेवाली कुछ हलकी शुक्रकों करनेवाली वातहरतीहै. अथ सौरीआदिअनेकमत्स्यनामगुणाः. शष्कुली ग्राहिणी हृद्या मधुरा तुवरा स्मृताः ॥ ११३ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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