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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धान्यवर्गः। २२३ चीनाकः कङ्गुभेदोऽस्ति स ज्ञेयः कङ्गवद्गुणैः। श्यामाकः शोषणो रूक्षो वातलः कफपित्तहत् ॥७५॥ टीका-क्षुद्रधान्य कुधान्य तृणधान्य यह छोटे धानके नाम, क्षुद्रधान शीतल कसेला हलका लेखन ॥ ७१ ॥ मधुर पाकमें कटु रूखा कफकों सुखानेवाला वातकों करनेवाला और मलकों बांधनेवाला पित्त रक्त और कफकों हरताहै ॥७२॥ उनमें स्त्रीलिंगमें कङ्गु प्रियङ्गु ये दोनों होते हैं काली लाल सुफेद तथा पीली ऐसी चार प्रकारकी कङ्गुनी होतीहै उन्में पीली श्रेष्ठ कहीहै ॥ ७३ ॥ कंगुनी टूटेहाडकों जोडनेवाली वातकृत्पुष्ट भारी रूखी कफकी अत्यन्त नाशकहै और घोडोंकों अत्यन्तही गुण करनेवालीहै ॥ ७४ ॥ चीना कांगुनीका भेदहै उस्कों गुणमे कंगुनीके समान जानना चाहिये सांवा शोषण रूखा वातकों करनेवाला कफपित्तकों हरताहै ॥ ७५ ॥ अथ कोद्रवरुचकवंशभवकुसुंभवीजगुणाः. कोद्रवः कोरदूषः स्यादुद्दालो वनकोद्रवः। कोद्रवो वातलो ग्राही हिमपित्तकफापहः ॥ ७६ ॥ उद्दालस्तु भवेदुष्णो ग्राही वातकरो भृशम् । चारुकः सरबीजः स्यात्कथ्यन्ते तद्गुणा अथ ॥ ७७ ॥ चारुको मधुरो रूक्षो रक्तपित्तकफापहः । शीतलो लघु वृष्यश्च कषायो वातकोपनः ॥७८ ॥ यवा वंशभवा रूक्षाः कषायाः कटुपाकिनः। बद्धमूत्राः कफनाश्च वातपित्तकराः सराः ॥ ७९ ॥ कुसुम्भबीजं वरटा सैव प्रोक्ता वराटिका। वरटा मधुरा स्निग्धा रक्तपित्तकफापहा ॥ ८॥ कषाया शीतला गुर्वी सा स्यादृष्यानिलापहा । टीका-कोद्रव कोरदूष यह कोदोंके नामहैं और वनकोद्रव उद्दाल यह वनकोदोंके नाम, कोदों वातकों करनेवाला काविज शीतल कफकों हरताहै ॥ ७६॥ वनकोदो उष्ण काविज और अत्यन्त वातको करनेवालाहै चारुक सरवीजका नामहै For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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