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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे अथ रत्ननिरुक्तिस्तथा निरूपणं. धनार्थिनो जनाः सर्वे रमन्तेऽस्मिन्नतीव यत् । ततो रत्नमिति प्रोक्तं शब्दशास्त्रविशारदैः ॥ १५६ ॥ रत्नं की मणिः पुंसि स्त्रियामपि निगद्यते । तत्तु पाषाणभेदोऽस्ति मुक्तादि च तदुच्यते ॥ १५७ ॥ रत्नं गारुत्मतं पुंस्यं रागो माणिक्यमेवच । इन्द्रनीलश्व गोमेदस्तथा वैडूर्यमित्यपि ॥ १५८ ॥ मौक्तिकं विद्रुमश्चेति रत्नान्युक्तानि वै नव । विष्णुधर्मोत्तरेऽपि नवरत्ननिरूपणम् । मुक्ताफलं हीरकं च वैडूर्यं पद्मरागकम् । पुष्परागं च गोमेदं नीलं गारुत्मतं तथा । प्रवालयुक्तान्येतानि महारत्नानि वै नव ॥ १५९ ॥ टीका - धनार्थी सबलोग जिसमें अधिककरके रमते हैं इसवास्ते व्याकरणके पंडितोंनें रत्न ऐसा कहा है || १५६ || अब रत्नके नाम और लक्षण निरूपण रत्न नपुंसक और मणिपुल्लिंगमें तथा स्त्रीलिंगमेंभी होता है वोह पाषाणका भेद है अब मुक्तादिकों कहता हूं ।। १५७ ॥ रत्नादिकोंका निरूपण रत्न गारुत्मत पुष्पराग और माणिक्यभी नील गोमेद तथा वैडूर्य यह ॥ १५८ ॥ और मोती मूंगा इसप्रकार यह नवरत्न कहैं रत्न हीरा गारुत्मत पन्ना सानीक नीलम विष्णुधर्मोत्तरमेंभी नवरत्न कहे हैं मोती हीरा वैडूर्य माणिक पुष्पराज गोमेद नील पन्ना और मूंगा यह नव महारत्न हैं ।। १५९ ।। अथ हीरकनामलक्षणगुणाश्च. हीरकः पुंसि वोऽस्त्री चन्द्रो मणिवरश्व सः । स तु श्वेतः स्मृतो विप्रो लोहितः क्षत्रियः स्मृतः ॥ १६० ॥ पीतो वैश्योऽसितः शूद्रश्वतुर्वर्णात्मकश्च सः । रसायने मतो विप्रः सर्वसिद्धिप्रदायकः ॥ १६१ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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