SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे संयोगजप्रभावेण तस्यान्येऽपि गुणाः स्मृताः ॥ ६७ ॥ कांस्यं कषायं तिक्तोष्णं लेखनं विशदं सरम् । गुरु नेत्रहितं रूक्षं कफपित्तहरं परम् ॥ ६८ ॥ टीका - तांबे और रांगासे उत्पन्न हुवा कांस्य प्रसिद्ध है घोष कंसक यह कांसेके नाम हैं कांसा तांबा और रांगों का उपधातु है ॥ ६६ ॥ कांसेके गुण अपकरण के समान जानना चाहिये संयोगज प्रभावसें उसके औरभी गुण कहे हैं ६७ कांसा कसेला तिक्त उष्ण लेखन सर विशद भारी नेत्रके हित रूखा कफपित्तकों हरताहै ॥ ६८ ॥ तथा पित्तल (काँचीपीतरी) गुणाः. पित्तलं त्वारकूटं स्यादारी रीतिश्च कथ्यते । राजरीतिर्ब्रह्मरीतिः कपिला पिङ्गलापि च ॥ ६९ ॥ रीतिरप्युपधातुः स्यात्ताम्रस्य यसदस्य च । पित्तलस्य गुणा ज्ञेयाः स्वयोनिसदृशा जनैः ॥ ७० ॥ संयोगजप्रभावेण तस्याप्यन्ये गुणाः स्मृताः । रीतिकायुगलं रूक्षं तिक्तं च लवणं रसे ॥ ७१ ॥ शोधनं पाण्डुरोगघ्नं कृमिघ्नं नातिलेखनम् । टीका - पित्तल आरकूट आरी रीति यह पीतलके नामहैं और राजरीत ब्रह्मta afपला पिंगला यह कच्चे पीतलके नाम गुणहैं ॥ ६९ ॥ पीतलभी तांबा और जस्ता उपधातु कहा है पीतलके गुण अपने कारणके सदृश जानने चाहिये ॥७०॥ संयोगके प्रभाव से उसके और गुण कहते हैं दोनों पीतल रूखे तिक्त लवण रसमें हैं ॥ ७१ ॥ और शोधन पाण्डुरोगकों हरते कृमि हरनेवाले न बहुत लेखन हैं || अथ सिन्दूरनामगुणाः. सिन्दूरं रक्तरेणुश्च नागगर्भश्च सीसजम् ॥ ७२ ॥ सीसोपधातुः सिन्दूरगुणैस्तत्सीसवन्मतम् । संयोगजप्रभावेण तस्याप्यन्ये गुणाः स्मृताः ॥ ७३ ॥ सिन्दूरमुष्णं वीसर्पकुष्ठकण्डूविषापहम् । For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy