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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८४ हरीतक्यादिनिघंटे यसदं रङ्गसदृशं रीतिहेतुश्च तन्मतम् । यसदं तुवरं तिक्तं शीतलं कफपित्तहत् । चक्षुष्यं परमं मेहान्पाण्डं श्वासं च नाशयेत् ॥ ३२॥ टीका-रांगके नाम लक्षण और गुण कहतेहै लालरांगेकों त्रषु तथा पिचटभी कहते हैं खुरक और मिश्रक ऐसा दोपकारका रांग होताहै ॥ २९ ॥ उस्में उत्तम खुरक और मिश्रक खराब होताहै रांग हलका सर रूखा गरम होताहै और प्रमेह कफ कृमि इनको हरताहै ॥ ३० ॥ और पाण्डुरोग श्वास इनकोंभी हरता है तथा नेत्रको हित और अल्पपित्त करनेवाला होताहै जैसे सिंह गजगणोंकों हरताहै वैसे रांगा सम्पूर्ण प्रमेहवर्गको हरताहै और देहका सौख्य इन्द्रियकी प्रबलता और पुष्टिकोंभी निश्चयसें करता है ॥ ३१॥ यसद रंगसदृश रीतिहेतु अर्थात् पीतलका कारण उस्कों कहाहै जस्त कसेला तिक्त शीतल कफपित्तकों हरता परमनेत्रके हित प्रमेह पाण्डुरोग श्वास इनकोभी हरताहै ॥ ३२ ॥ अथ सीसस्योत्पत्तिर्नामगुणाश्च. दृष्ट्वा भोगिसुतां रम्यां वासुकिस्तु मुमोच यत् । वीर्य जातस्ततो नागः सर्वरोगापहो नृणाम् ॥ ३३ ॥ सीसं ब्रनं च वप्रं च योगेष्टं नागनामकम् । सीसं रङ्गगुणं ज्ञेयं विशेषान्मेहनाशनम् ॥ ३४ ॥ नागस्तु नागशततुल्यबलं ददाति व्याधि विनाशयति जीवनमातनोति ॥ वहिं प्रदीपयति कामबलं करोति मृत्युं च नाशयति सन्ततसेवितः सः ॥ ३५ ॥ पाकेन हीनौ किल वङ्गनागौ कुष्ठानि गुल्मांश्च तथातिकष्टान् । कण्डूं प्रमेहानलसादशोथभगन्दरादीन्कुरुतः प्रभुक्तौ ॥३६॥ टीका-अब शीसेकी उत्पत्ति नाम और गुण कहतेहै वासुकीने सुंदर नागकन्याओंकों देखकर वीर्यकों छोडा उस्से मनुष्योंके सब रोंगोंकों हरता शीसा उत्पन्न हुवा ॥ ३३ ॥ शीस ब्रन व योगेष्ट नागनामक अर्थात् सांपके नामवाला यह शीसेके नाम हैं शीसा गुणमें रांगके समान होताहै और विशेषकरके प्रमेहकों हरताहै ॥ ३४ ॥ शीसा सौ हाथीके समान बलकों देताहै और रोगोंकों हरता है तथा जी For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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