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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आम्रादिफलवर्गः। १७७ श्वास कास अजीर्ण वमन इनको हरता तथा कफवातके रोगोंको हरनेवाला और बकरीके मांसकों गलानेवाला है ॥ १४१ ॥ चणकाम्लके समान गुणमें है और लोहेकी सुईको गलानेवाला है. अथ रक्षाम्लनामगुणाः. वृक्षाम्लं तिन्तिडीकं च चुकं स्यादम्लवृक्षकम् ॥ १४२ ॥ वृक्षाम्लमाममम्लोष्णं वातघ्नं कफपित्तलम् । पक्कं तु गुरु संग्राहि कटुकं तुवरं लघु ॥ १४३ ॥ अम्लोष्णं रोचनं रूक्षं दीपनं कफवातरुत् । तृष्णार्थीग्रहणीगुल्मशूलहृद्रोगजन्तुजित् ॥ १४४ ॥ अम्लवेतसवृक्षाम्लहजम्बीरनिम्बुकैः । चतुरम्लं हि पञ्चाम्लं बीजपूरयुतैर्भवेत् ॥ १४५॥ टीका-वृक्षाम्ल तितिडीक चुक्र अम्लक्षक यह विषाम्बिलके नाम हैं ॥१४२॥ विषाम्बिल कच्ची खट्टी उष्ण वात हरती कफपित्तकों करनेवाली होतीहै और पकीहुवी भारी काविज कडवी और कसेली हलकी ॥ १४३ ॥ खट्टी गरम अरुचिकों करनेवाली रूखी दीपन कफवातकों हरनेवाली और तृषा ववासीर संग्रहणी वायगोला शूल हृदयरोग कृमि इनको हरनेवाली है ॥ १४४ ॥ चतुरम्ल और पश्वाम्ल इनदोनोंका लक्षण कहतेहै अमलवेत वृक्षाम्ल और बडा जंबीरनींबू इनसे चतुराम्ल होता है और विजोरेके मिलानेसें पञ्चाम्ल होताहै ॥ १४५ ॥ फलेषु परिपक्वं यद्गुणवत्तदुहाहृतम्। बिल्वादन्यत्र विज्ञेयमामं तद्विगुणाधिकम् ॥ १४६ ॥ फलेषु सरसं यत्स्याद्गुणवत्तदुदाहृतम् । द्राक्षाबिल्वशिवादीनां फलं शुष्कं गुणाधिकम् ॥ १४७ ॥ फलतुल्यगुणं सर्वं मजानमपि निर्दिशेत् । फलं हिमाग्निदुर्वातव्यालकीटादिदूषितम् । अकालजं कुभूमिजं पाकातीतं न भक्षयेत् ॥ १४८॥ २३ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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