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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आम्रादिफलवर्गः । १७३ है ॥ ११४ ॥ और पश्चिमदेशमें होती है उस्कों छुहारा ऐसा कहते हैं. तीनों खजूर शीतल, रसपाकर्मे मधुर, होती है और चिकनी, रुचिकों करनेवाली, हृद्य, क्षत, क्षय, इनकों हरनेवाली, भारी, ॥ ११५ ॥ तर्पण, रक्तपित्तकों हरती, पुष्टि, विष्टम्भ, शुक्रकों करनेवाली, कुष्ठवातकों हरती, बलकों देनेवाली वमन, वात, कफ, इनकों हरती, ज्वर, अतिसार, क्षुधा, तृषा, कास, श्वास, इनकों हरनेवाली ॥ ११६ ॥ मद मूर्च्छा, वात, पित्त, और मद्यके सेवनसें उत्पन्न हुवे रोगोंकों हरनेवाली है बड़ी खजूरोंसें छोटी खजूर गुणमें न्यून कही है ॥ ११७ ॥ खजूरके वृक्षका जल, मद, पित्त, इनकों करनेवाला है और वातकफकों, हरता रुचिकों देनेवाला, दीपन, वलशुक्रकों करनेवाला है ॥ ११८ ॥ सुलेमानी, मृदुला, दलहीनफला, यह सुलेमानी खजूरके नाम हैं. सुलेमानी खजूर, श्रम, भ्रान्ति, दाह, रक्तपित्त, इनकों हरनेवालाहै ॥ ११९ ॥ अथ वादामसेव, तथा अमृतफलनामगुणाः. वातादो वातवैरी स्यान्नेोपमफलस्तथा । वाताद उष्णः सुस्निग्धो वातघ्नः स च शुक्रकृत् ॥ १२० ॥ वातादमज्जा मधुरो वृष्यः पित्तानिलापहः । स्निग्धश्व कफन्नेटो रक्तपित्तविकारिणाम् ॥ १२१ ॥ मुष्टिप्रमाणं बदरं सेवं सिवितिकाफलम् । सेवं समीरपित्तघ्नं बृंहणं कफकगुरु । रसे पाके च मधुरं शिशिरं रुचिशुक्रकृत् ॥ १२२ ॥ अमृतफलं लघुवृष्यं सुखदंद्वौ त्रीन्हरेद्दोषान् । देशेषु मुगलानां बहुलं तल्लभ्यते लोकैः ॥ १२३ ॥ वाताद वातवैरी नेत्रोपमफल यह बदामके नामहैं बदाम उष्ण, स्निग्ध, वातहरता, शुक्रकों करनेवाला भारी होताहै ॥ १२० ॥ बदामकी गिरी मधुर, शुक्रकों करनेवाली, पित्तवातकों हरती स्निग्ध उष्ण कफकरनेवाली होती है और रक्तपित्तके रोगवालोंकों हित नहीं होती ॥ १२१ ॥ मुष्टिप्रमाण बदर सेव सिवितिकाफल, यह सेवके नाम हैं सेव वातपित्तकों हरता, पुष्ट कफकों करनेवाला भारी होता है और रसपाका में मधुर शीतल रुचि और शुक्रकों करनेवाला है || १२२ || अमृतफल For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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