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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे बीजकः कुष्ठवीसर्पश्वित्रमेहगुदकृमीन् ॥ २८ ॥ हन्ति श्लेष्मास्त्रपित्तं च त्वच्यः केश्यो रसायनः । टीका - अब आसन और विजयसारके नाम गुण कहते है. बीजक, पीतसार, पीतशालक ॥ २७ ॥ बन्धूकपुष्प, प्रियक, सर्जक, आसन, यह विजयसारके नाम हैं. विजयसार कुष्ठ, विसर्प, श्वित्र, प्रमेह, गुद, कृमि इनकों हरताहै ॥ २८ ॥ और कफ, रक्त, पित्तकों भी हरता है तथा त्वचाका हित, केशका हित, तथा रसायन है. अथ खदिरनामगुणाः. खदिरो रक्तसारश्व गायत्री दन्तधावनः ॥ २९ ॥ कण्टकी वालपत्रश्च बहुशल्यश्च यज्ञियः । खदिरः शीतलो दन्त्यः कण्डूकासारुचिप्रणुत् ॥ ३० ॥ तिक्तः कषायो मेदोघ्नः कृमिमेहज्वरव्रणान् । श्वित्रशोथामपित्तास्त्रपाण्डुकुष्ठकफान्हरेत् ॥ ३१ ॥ टीका - खदिर, रक्तसार, गायत्री, दन्तधावन, ॥ २९ ॥ कण्टकी, वालपत्र, बहुशल्य, यज्ञिय, यह खैरके नाम हैं. खैर शीतल, दन्तकों अच्छा करनेवाला, कण्डू, कास, अरुचि, इनकों हरता है ॥ ३० ॥ तिक्त, कसेला, मेदकों हारक, कृमि, प्रमेह, ज्वर, व्रण, शोथ, आम, रक्तपित्त, पांडुरोग, कुष्ठ, कफ, इनकों हरता है ३१ अथ श्वेतखदिर तथा इरिमेदनामगुणाः. खदिरः श्वेतसारोऽन्यः कदरः सोमवल्कलः । कदरो विशदो वण्यों मुखरोगकफास्त्रजित् ॥ ३२ ॥ इरिमेदो विखदिरः कालस्कन्धोऽरिमेदकः । इरिमेदः कषायोष्णो मुखदन्तगदात्रजित् ॥ ३३ ॥ हन्ति कण्डूविषश्लेष्मकमिकुष्ठविषव्रणान् । टीका - सुफेद कत्था जिस्कों पपडीखैर कहते हैं उसके नाम गुण कहते है. खदिर, श्वेतसार, कंदर, सोमवल्कल यह पपडीखैरके नाम हैं. पपडीखैर विशद, वर्णकों अच्छा करनेवाला, मुखरोग, कफ, रक्त, इनकों जीतनेवाला है || ३२ ॥ इरिमेद विट्खदिर, कालस्कन्ध, अरिमेदक, यह दुर्गन्ध खैरके नामहैं. दुर्गन्ध खदिर, कसेला, For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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