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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुष्पादिवर्ग: । १३५ मधुर, शीतल, कसेला, नमकीन भारी ॥ ३४ ॥ विष्टम्भ, सर करनेवाला, रुखा है, और कफ, दुग्धवात, इनकों करनेवाला है, कुब्नक, भद्रतरणी, बृहत्पुष्प, अतिकेसर ॥ ३५ ॥ महासहा, कण्टकाद्या, नीलालिकुलसंकुला यह कूजाके नाम हैं. यह फूल सेवंतीकी किस्मसे होता है, कूजा सुगन्धयुक्त, मधुर, पीछेसे कसेला, सर ॥ ३६ ॥ त्रिदोषशमन, शुक्रकों उत्पन्न करनेवाला, शीत कहागया है. अथ मल्लिका तथा माधवी नामगुणाः. मल्लिका मदयन्ती च शीतभीरुव भूपदी ॥ ३७ ॥ मल्लिकोशा लघुर्वृष्या तिक्ता च कटुका हरेत् । वातपित्तास्यग्व्याधि कुष्ठारुचिविषव्रणान् ॥ ३८ ॥ माधवी स्यात्तु वासन्ती पुण्ड्रको मण्डकोऽपि च । अतिमुक्तो विमुक्तश्च कामुको भ्रमरोत्सवः ॥ ३९ ॥ माधवी मधुरा शीता लघ्वी दोषत्रयापहा । । टीका - मल्लिका, मदयन्ती, शीतभीरु, भूपदी ॥ ३७ ॥ यह मालतीके नाम हैं. मालती गरम, हलकी, शुक्रकों उत्पन्न करनेवाली, तिक्त, कडवी होती है, और वात, पित्त, मुख, दृष्टि, कुष्टरोग, अरुचि, विष, व्रण, इनकों हरती है ॥ ३८ ॥ माधवी, वासन्ती, पुण्ड्रक, मण्डक, अतिमुक्त, विमुक्त, कामुक, भ्रमरोत्सव ॥ ३९ ॥ यह मोतियाके नाम हैं. मोतिया शीतल, मधुर, हलका दोषत्रयकों हरता है. अथ सुवर्णकेतकीनामगुणाः. केतकः सूचिकापुष्पो जम्बुकः क्रकचछदः ॥ ४० ॥ सुवर्णकेतकी त्वन्या लघुपुष्पा सुगन्धिनी । केतकः कटुकः स्वादुर्लघुस्तिक्तः कफापहः ॥ ४१ ॥ उष्णा तिक्ता रसा ज्ञेया चक्षुष्या केतकी । टीका - केतक, सूचिकापुष्प, जम्बुक, क्रकचच्छद, यह केवडेके नाम हैं ॥ ४० ॥ -------- और दूसरा सुनहरीकेवडा छोटे फूलवाला, सुगन्धयुक्त होता है. केवडा मधुर, हलका, तिक्त, कफकों हरता है, और सुनहरीकेवरा ॥ ४१ ॥ उष्ण रसमें तिक्त नेत्र हित होता है. For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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