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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२६ हरीतक्यादिनिघंटे टीका-गोजिव्हा, गोजिका, गोभी, दार्विका, खरपणिनी, यह गावजुवाके नाम हैं. गावजुवा वातकों करनेवाला, शीतल, काविज, कफपित्तको हरता है २९७ और हृद्य, प्रमेह, कास, रक्तत्रण, ज्वर, इनकों हरती है. और हलकी होती है, तथा कोमल, कसेली, तिक्त, पाक और रसमें मधुर कही गई है ॥ २९८ ॥ अथ नागदमनीनामगुणाः. विज्ञेया नागदमनी बला मोटा विषापहा । नागपुष्पी नागपत्रा महायोगेश्वरीति च ॥ २९९ ॥ बला मोटा कटुस्तिक्ता लघुः पित्तकफापहा । मूत्रकृच्छ्रव्रणानक्षो नाशयेजालगर्दभम् ॥ ३०० ॥ सर्वग्रहप्रशमनी निःशेषविषनाशिनी । जयं सर्वत्र कुरुते धनदा सुमतिप्रदा ॥ ३०१ ॥ टीका-नागदोन, नागदमनी, बला, मोटा, विषाप्रहा, नागपुष्पी, नागपत्रा, महायोगेश्वरी ॥ २९९ ॥ नागदमन कडवी, तीखी, हलकी, पित्तकफकों हरती है, और मूत्रकृच्छ्र, घाव, राक्षस, इनको हरती है. और जालगर्दभ नाम फुसीकों हरती है ॥ ३०० ॥ और संपूर्ण ग्रहोंकों, इनकों हरती है तथा अशेष विषकों हरती है और सर्वत्र जयकों करती है, तथा धनकों देनेवाली है, तथा अच्छी मतिको देनेवाली है ॥ ३०१ ॥ अथ वीरतरु(वरवेल)नामगुणाः. वेलन्तरो जगति वीरतरुः प्रसिद्धः श्वेतासितारुणविलोहितनीलपुष्पः। स्याजातितुल्यकुसुमः शमिसूक्ष्मपत्रः स्यात्कण्टकीविजलदेशज एष वृक्षः ॥ ३०२ ॥ वेलन्तरो रसे पाके तिक्तस्तृष्णाकफापहः । मूत्राघाताश्मजिद्राही योनिमूत्रानिलार्तिजित् ॥ ३०३ ॥ टीका-वेलन्तर जगमें वीरतरु नामसें प्रसिद्ध है. वह सुफेद काला अरुण लाल नील एसे फूलवाला होता है. अपनी जातकी सदृश फूल होते हैं. और शमीक्षके For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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